पर्दाफाश (लघु कथा)
मनमोहन जी ने आज पूरी तरह से ठान लिया था कि चाहे जो हो आज सोनाली भाभी का पोल खोल कर रहूंँगा।सीधे-साधे शपथ भैया के विश्वास को वह किस प्रकार चकनाचूर कर रही हैं, यह जरा उन्हें भी पता चले। यूंँ तो लोगों के बीच स्वयं को सती-सावित्री के तेवर दिखाती हैं ।लेकिन शपथ भैया के घर से जाते ही घर के फाटक पर खड़े होकर जाने किसका इंतजार करती हैं और हाथ हिला -डूलाकर उसे विदा करती हैं।सब फाटक की जाली से दिखता है।भले ही मैं उनके घर किराए पर रहता हूंँ । लेकिन हूँ तो उन्हीं के घर का हिस्सा। बाद में कुछ ऊंच-नीच होने से अच्छा है उन्हें पहले ही सतर्क कर दूँ।
शपथ भैया के दफ्तर के लिए निकलने से पूर्व ही वे निकलकर गली के एक विद्युत-खम्भे के पीछे छुपकर खड़े हो गए। नित्य नियम की भाँति आज भी शपथ भैया के घर से निकलते ही सोनाली भाभी गालों में लगाए पाउडर को हथेलियों से मिलाती हुई बाहर आ गई और प्रफुल्लित मन से धीरे-धीरे कोई गीत गुनगुनाती जा रही थी,जो स्पष्ट सुनाई नहीं पड़ रहा था । मोड़ पर खड़े शपथ भैया के पास आकर एक टैक्सी रुकी जिसमें सवार होते हुए उन्होंने हाथ हिलाया तो सोनाली भाभी भी हाथ डुलाकर गीत गुनगुनाती हुई घर के अंदर चली गईं।थोड़ी देर इंतजार के बाद भी जब वह दुबारा नहीं निकली तो मन ही मन सोचने लगे यह तो पता नहीं चल पाया कि वह रोज किसको हाथ डुलाकर विदा करती हैं।आज लगता है बाहर निकलते ही शपथ भैया खड़े मिल गए इसलिए उनकी बात नहीं बनी ।फिर भी यह बात मैं उन्हें बता कर रहूंँगा। अपने मन में कुलबुलाते शक के कीड़ों को सांत्वना देते हुए वे घर पहुंँच गए।पत्नी मायके में थी इसलिए स्वयं का बनाया हुआ भोजन कर अपने दफ्तर के लिए निकल गए ।शाम में घर आते ही देखा सपथ भैया घर के बाहर बैठे चाय पी रहे हैं।अंतिम चुस्की लेते ही उन्होंने जैसे ही प्याला रखा। उन्होंने सोचा यह अच्छा मौका है सोनाली भाभी के करतूतों को उजागर करने का।- "क्या बात है भैया ! आज तो भाभी आप को बड़े प्यार से गीत गाते हुए हाथ डुलाकर दफ्तर के लिए विदा कर रही थीं।"उन्होंने यह बात बताने की गर्ज से बिना भूमिका बांधें ही बात की शुरुआत की।
"कब?" शपथ भैया ने ना समझते हुए पूछा।
"जब आप दफ्तर जा रहे थे।" "अरे- रे!उसका तो यह नित्य का नियम है।रोज मेरे निकलने से पहले स्नान कर लेती है।जब-तक मैं सड़क पर जाता हूंँ, सिंदूर- पाउडर लगाकर मेरे पीछे आती है। साथ में हनुमान चालीसा इत्यादि का पाठ भी कर लेती है। फिर जैसे ही मेरे साथियों के साथ ले जाने वाली टैक्सी आती है,मैं चला जाता हूंँ और यह पूजा पाठ कर लेती हैं।"
मन मोहन जी की बोलती बंद हो गई थी।आज उनके मन का भ्रम टूट चुका था।सोनाली भाभी नास्ते की तश्तरी और पानी भरा गिलास बाहर निकलीं ।मनमोहन जी उनसे नजरें चुराते हुए अपने किराए के कमरे की ओर बढ़ चले।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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