व्यवहार (मुक्तक)
सब कर्म से ऊपर है,मानव का व्यवहार।
जिसे मर्म यह है पता,करता है उपकार।
सभी जनों से बोलता,है वह मीठी बोल-
सुव्यवहार से सबका,करता है सत्कार।
जग में जितने भी हुए, व्यवहार कुशल लोग।
उनके संगी जो रहे,मीत बने संयोग।
सबके मन का दुःख हरे,मन को करते शांत-
चित उनका निर्मल रहा, दूर रहा सब रोग।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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