सूरज (वर्ण पिरामिड)
आ
देखो
सूरज
हैं निकले
पूर्व दिशा में
दूर - दूर तक
देख लालिमा छाई।
वो
मंद
हंँसी से
मुस्काते हैं
हौले से वहांँ
जैसे जाग कर
अभी ली अंगड़ाई ।
औ
कह
रहे हैं
हंँस कर
तुम भी जागो
क्यों सोई हो तुम
अब भी अलसायी।
तू
देखो
आकर
काली रैना
बीत गई है
दिशा दिशा अब
अति खुशियांँ छाई।
हे
सूर्य
देवता
है आपको
अभिनंदन
आपसे धरती
अब जगमगायी।
दें
अब
सबको
आशीर्वाद
बस इतना
सदा सदा तक
हो जन सुखदाई।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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