झूठे जग की झूठी मूरत पर।।
सुंदर ना होता सूरत वाला ।
तरकशा-गोरा मूरत वाला।।
जिस मानव का मन है सुंदर।
उस मानव का तन है सुंदर।।
प्रेम बिना यह तन है सूना।
सुगंध बिना जैसे प्रसूना।।
दिल तेरा है यंत्र संचालित।
द्वेष- घृणा तुम करते हो नित।।
आंखें पाकर भी हो अंधे।
बुरी निगाह कहीं डालो बंदे।।
कंठ तुम्हारा गंदी खोली।
जिससे ना निकले अच्छी बोली।।
बहरे हो कानों के रहते।
कहने वाले से विपरीत सुनते।।
हाथ -पाँव का लुला-लंगड़ा।
आंवलाओं से करता झगड़ा।।
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