मुफ्त में सब्जी
पत्नी बोली सुनो पिया जी!तुमको अकल नहीं है।
मोल-भाव कर सब्जी लेने का,कोई नकल नहीं है।
बिक्रेता जितना दाम बताता है,उतने में तू लेते हो।
अपनी कमाई का मोटा हिस्सा बेकार गवाँं देते हो।
बड़े ही तुम हो सीधे- सादे ,और बड़े हो तुम भोले।
दो रुपए तुम दाम घटाओ,जितना विक्रेता बोले।
चले पिया जी सब्जी लाने, पाकर पत्नी से शिक्षा।
प्रिया ने जो था पाठ पढ़ाया,देने उसकी परीक्षा।
पत्नी जी की पसन्द की, वे सभी सब्जियाँं लाने।
हर सब्जी के दामों में,लगे दो-दो रुपए घटवाने।
एक बूढ़ी सब्जी वाली, दिखती चेहरे की भोली।
मुट्ठी भर धनिया-पत्ती का, दाम दो रुपए बोली।
पति महोदय हंस बोले,मुफ्त में दो धनिया पत्ती।
सब्जी वाली के चेहरे पर,साफ दिखी आपत्ति।
आंँखों को नचाकर पूछी,क्या तेरे मुंँह हैं चिकने?
सब्जियांँ दान करने ना रखी, रखी यहां मैं बिकने।
पति महोदय हंँसकर बोले, क्यों गुस्सा करती माई।
दो रुपए दाम घटाने को,प्यारी पत्नी है मुझे सिखाई।
दो रुपए की धनिया पत्ती का, दाम बता क्या होगा?
दो रुपए कम करने पर, यह मुफ्त में ही तो होगा।
सब्जी वाली हँंसकर बोली- सुन मेरा बेटा ! भोला।
उस दिन तुम आकर,यहांँ पर मुफ्त भरना झोला।
जिस दिन सब्जी बेचने बैठेगी,यहाँं तेरी घरवाली।
सब्जियों से भर ले जाना,घर अपना झोला खाली।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
मोल भाव का सबक , अच्छा है ।
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