Friday, March 3, 2023

उपवन (काव्य )



उपवन 

छोटे-छोटे पेड़ लगे हैं,मेरे छोटे उपवन में।
रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं,मेरे छोटे उपवन में।

यहांँ बैठ कर प्यारी चिड़ियांँ, चहक-चहक कर गाती हैं।
यहांँ बैठकर काली कोयल,पंचम राग सुनाती है।
सुन सबका मन झूम उठता,उसके मीठे गायन में।
रंग-विरंगे पुष्प खिले हैं..........
यहांँ फूलों पर रंगीन तितलियांँ बैठती-उड़ जाती हैं।
सुंदर फूलों के रस चूसने, मधुमक्खियाँं मडराती हैं।
भौंरे मीठा गाना गाते, बीन बजा अपनी धुन में।
रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं..............
स्वच्छ-शीतल-मधुर बयार के, झोंके यहाँ से आते हैं।
भीनी भीनी फूलों की खुशबू, अपने संग में लाती हैं।
हृदय प्रफुल्लित सदा ही रहता, अपने नंदन-कानन में।
रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं.........
गिलहरी और खरगोश घूमते नन्हें- नन्हें पांवों से।
मीठी-मीठी नींद लेते हैं,सुस्ताते हैं छावों में।
उन्हें देख सुख बहुत ही होता,मेरे चंचल चितवन में।
रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं...........

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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