मेरे इस नन्हें से दिल को
साजन तूने खूब सताया, मेरे इस नन्हें से दिल को।।
कैसा है तू समझ न पाया,मेरे इस नन्हें से दिल को।।
विरह में तेरे तड़प रहा है,होकर कितना व्याकुल।
तुझसे दूर न रह पाएगा,कहता है होकर आकुल।
ओ निर्मोही!खूब तड़पाया,मेरे इस नन्हें से दिल को।।
तड़पाना ही तुझे अगर था,फिर क्यों प्रीत लगाए ?
सोया था यह करवट लेकर,क्यों कर इसे जगाए ?
ना जाने तुम क्यों भाये थे,मेरे इस नन्हें से दिल को।।
संग ना रख पाया पल भर,तन्हा इसको छोड़ें क्यों?
प्यार में तेरे दीवाना था,टुकड़े- टुकड़े तोड़े क्यों?
इधर-उधर क्यों कर बिखराया,मेरे इस नन्हें से दिल को?
दिल मेरा इक छोटा पंछी,इत-उत थोड़ा उड़ता था।
अभी फुदकना ही सीखा था,ना कहीं वह मुड़ता था।
क्यों फांँसने को जाल बिछाया,मेरे इस नन्हें से दिल को ?
दाना डाला था इसे दिखाकर,गया बेचारा लालच में।
दो-चार दाने ही चुग पाया,फँसा जाल के आनन में।
धोखे देकर तूने फँसाया,मेरे इस नन्हें से दिल को।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
हृदय स्पर्शी रचना । बेहतरीन प्रस्तुति।
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