हिन्दी (कृपाण घनाक्षरी )
हिन्दी हमारी शान है।
देश की पहचान है।
इसी से अभिमान है।
इसे मान बढ़ाइए।
हम हिन्दी में बोलते।
बोली में मिश्री घोलते।
हर भाषा से तोलते।
हिन्दी को अपनाइए।
सभी जनों को भाती है।
समझ जल्दी आती है।
नयी उमंग लाती है।
इसे मन बसाइए।
सब भाषा में प्यारी है।
लगती कैसी न्यारी है।
जैसे फूलों की क्यारी है।
बात तो मान जाइए।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
बहुत खूब ।
ReplyDeleteवाह!सखी ,बहुत खूब!
ReplyDeleteसरल-सुगम शब्दों से गढ़ी सुन्दर रचना!
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