शिव ( दोहे )
शिव देवों के देव हैं, चरणों में प्रणाम।
हर-हर,शिव-शिव बोल ततू,जपते जाओ नाम।।
सबका ये संकट हरे,सब के पालनहार।
जग वालों पर हैं सदा, करते वे उपकार।।
मस्तक पर है चंद्रमा,जटा गंग की धार।
बाघम्बर ओढ़े वदन,गले सर्प की हार।।
एक हाथ त्रिशूल है, कमण्डल दूजे हाथ।
नत्मस्तक होकर सदा, भक्त झुकाते माथ।।
मंदिरों में विराजते, गौरी मांँ के संग।
सारा जग हैं घूमते,चढ़ बसहा के अंग।।
खाते सदा भांग चबा, लगाते हैं विभूत।
कार्तिक और गणपति हैं, दोनों इनके पूत।।
नंदी जिनके साथ हैं, भक्ति भाव के रूप।
मिले न ऐसा भक्त कभी,अनुपम रूप -अनूप।
शिव के कर में शोभता,सोने का त्रिशूल।
शिव शंकर संहारक हैं,यह मानव की भूल।
आपकी ज्योति पुंज से,जगमग है संसार।
ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं, महिमा अपरम्पार।
इनके चरणों में सभी,सदा नवाओ माथ।
रहते अपने भक्त के,हर पल शंकर साथ।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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