शिक्षक
ऐसे शिल्पकार
जो मंदिर उठाते ज्ञान के।
शिक्षक ऐसे काष्ठकार जो , द्वार बनाते ज्ञान के। शिक्षक ऐसे मूर्तिकार जो, मूरत बनाते ज्ञान के।
शिक्षक ऐसे बुनकर हैं जो, वस्त्र बनाते ज्ञान के।
शिक्षक ऐसे स्वर्णकार जो, गहने गढ़ते ज्ञान के।
शिक्षक ऐसे माली हैं जो , फूल खिलाते ज्ञान के।
शिक्षक ऐसे पंडित हैं जो , पूजन करते ज्ञान के।
शिक्षक ऐसे त्रृषि-मुनि हैं जो, दीक्षा देते ज्ञान के।
शिक्षक ऐसे दीपक हैं जो,ज्योत जलाते ज्ञान के।
शिक्षक ऐसे मार्गदर्शक जो,राह दिखाते ज्ञान के।
शिक्षक ऐसे अनुगामी जो,लक्ष्य दिलाते ज्ञान के।
शिक्षक ऐसे रक्षक हैं जो,रक्षक हैं बनते ज्ञान के।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
समस्त शिक्षकों को सादर समर्पित
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (6-9-22} को "गुरु देते जीवन संवार"(चर्चा अंक-4544) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर। बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत उम्दा जी ।
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