जय श्रीराम
दशरथ जी के लालना,राम बड़े थे वीर।
जीवों पर करते दया,लड़ने में रणधीर।
मझली मांँ ने द्वेष से, दिलवाया वनवास।
पिता आज्ञा पालन को,धर मन चले हुलास।
मातु-पिता और गुरु के,चरणों में रख शीश।
गुरु जन को प्रणाम कर, लेकर वे आशीष।
लघु-भ्राता लक्ष्मण जी,जोड़ कर दोनों हाथ।
बोले भैया आपके, मैं भी चलता साथ।
त्याग राजसी वस्त्र को, पहने वलकल अंग।
माता सीता भी चली, ख़ुश हो उनके संग।
वन-वन भटके साथ वे, खाते मूल और कंद।
छोटी-सी कुटिया बना,रहते ले आनन्द।
कपटी रावण ले गया, सीता को हर साथ।
एक न माना वह उनकी, रोकर जोड़ी हाथ।।
विकल हो तब राम लखन,ढूंढे चारो ओर।
लेकिन सीता का वहाँ,मिला न कोई छोर।।
घायल जटायु तब मिला, बतलाया यह बात।
सीता के गहने दिखा, जोड़े दोनों हाथ।।
वानर सेना ले बढ़े, प्रभु लंका की ओर।
रावण से जाकर किया, युद्ध बड़े घनघोर।
सीता को ले पहुंचे, साथ अयोध्या धाम।
नगर वासी खुश होकर,जपे राम का नाम।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
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