गुरुजी देते हैं हमें, विद्या- बुद्धि व ज्ञान।
उनसे से हम सीखते,साहित्य,व-विज्ञान।।
लक्ष्य-प्राप्ति के लिए, बतलाते हैं राह।
बिना गुरु के जीवन में, मिलता है ना थाह।।
अनगढ़ माटी शिष्य हैं, गुरु होते कुम्हार।
गढ़ते रख कर चाक पर,देत सुगढ़ आकार।।
पाते गुरु से ज्ञान हैं,मन में उच्च विचार।
गुरु ज्ञान के सागर हैं, करें ज्ञान विस्तार।।
गुरु अपने आदर्श से,देते सबको ज्ञान।
गुरु के गुणों को अपना,बनते लोग महान।।
शिक्षा की प्रसाद को पा,बन जाते गुणवान।
शिक्षक के गुण को अपना,बनते गुण की खान।।
गुरु ज्ञान की ज्योत जला, देते हमको ज्ञान।
प्रकाश देना ज्ञान का, शिक्षक की पहचान।।
चरण कमल में सिर नवा, गुरु को करें प्रणाम।
प्रथम देव गुरु आप हैं,मुख में जपते नाम।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
No comments:
Post a Comment