लो आया राखी का त्योहार।
लेकर भाई -बहन का प्यार।
बाँध कलाई राखी के धागे।
रख आरती की थाली आगे ।
भैया तुझसे प्यार मैं माँगू।
छोटा- सा उपहार मैं माँगू।
मेरे लिए कुछ शर्त थी तेरी।
माना थी रक्षाअस्मत कीमेरी।
कभी अकेली कहीं न जाऊँ।
पढ़- लिखकर सीधे घर आऊँ।
तन को वसन से पूरा ढककर।
चलूँ राह में नजर झुकाकर।
लो ,मैंने रख ली लाज तुम्हारी।
आई न इज्जत पर आँच तुम्हारी।
इसके बदले एक शर्त है मेरी।
राखी पर यह एक अर्ज है मेरी।
जैसे करते थे तुम मेरी रक्षा।
सब नारियों को देना सुरक्षा।
दुःशासन तुम कभी न बनना।
लाज किसी की कभी न हरना।
सदा सभी को केशव बनकर।
रक्षा करना तुम चीर बढ़ाकर।
नारियों का सम्मान तू करना।
विनती करती है तुझसे बहना।
सुजाता प्रिय समृद्धि
.. .. बहुत सुन्दर सामयिक रचना
बहुत सुंदर रचना ।
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