अर्धनारीश्वर (सायली छंद)
अजब
रूप है
तुम्हारा हे भोले
शिव-शंकर
त्रिपुरारी।
आधा
नर हो
और आधा है
दिखते तुम
नारी।
आधे
अंग में
तुम तो अपना
रूप है
साजे।
आधे
अंग में
लगती हैं तेरे
पार्वती मांँ
विराजे।
बता
कि कैसे
तूने यह सुंदर
रुप है
बनाया।
नर
औ नारी
के वदन को
एक शरीर
समाया।
एक
हाथ में
रुद्राक्ष माला और
त्रिशूल है
शोभित।
एक
हाथ में
चूड़ियांँ और कंगन
सुंदर फूल
मोहित।
ऐसा
अद्भुत यह
रूप तुम्हारा सबके
मन को
भाये।
कैसे
यह रूप
धारण करते हो
समझ नहीं
पाये।
नागेश्वर
इसीलिए तुम
हो सम्पूर्ण जगत
के कहलाते
अंतर्यामी।
महेश्वर
तेरा है
यह रूप निराला
हे अर्धनारीश्वर
स्वामी।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
ॐ नमः शिवाय। सुंदर रचना!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteवाह
सुन्दर, मोहक
ReplyDelete