Monday, February 28, 2022

शिवरात्रि व्रत की महिमा



शिवरात्रि व्रत की महिमा

एक बार नारद जी ने  ब्रह्माजी से प्रश्न करते हुए कहा- शिवरात्रि को भगवान शंकर का विवाह माता पार्वती से हुआ, यह तो हमें ज्ञात है ।किन्तु, शिवरात्रि को रात्रि जागरण एवं दीप प्रज्वलित करने की महिमा का क्या विधान है तथा इसके करने से हमें कौन सा फल प्राप्त हो सकता है?कृपा कर हमें बताएं।
इस पर ब्रम्हा जी ने कहा-
आदि काल में कपिलपूरी में यज्ञदत्त नाम के एक विद्वान ब्राह्मण थे ।उनका पुत्र गुणानिधि बड़ा बुद्धिमान और चतुर था।परंतु कुमार्ग में पढ़कर धर्म और कर्म से भटक गया। वह खिलाड़ियों, जुआरियों और गाने- बजाने वालों के साथ रहने लगा और अपने पिता की संपत्ति लूटाने लगा। 
उसकी मां उसे हमेशा रोकती और समझाती कि तुम्हारे पिता बहुत ही विद्वान महात्मा हैं। परंतु साथ -साथ बहुत बड़े क्रोधी भी हैं ।यदि उन्हें तुम्हारी असलियत पता चल जाएगा तो तो बड़ा अनर्थ होगा।वह तुम्हारा और मेरा त्याग भी कर देंगे ।लेकिन यज्ञदत्त पर उसका कोई प्रभाव ना पड़ता।
यज्ञदत्त जब कभी गुणानिधि के घर के बाहर रहने के बारे में अपनी पत्नी से पूछते वह पुत्र -मोह के कारण बात बना कर टाल देती ।इस प्रकार पुत्र के कुकर्मों से अनभिज्ञ यज्ञदत्त ने अपनी एक अंगूठी किसी जुआरी के पास देखा तो कहा -यह अंगूठी मेरी है। 
जुआरी ने तन कर कहा -यह अंगूठी आपकी नहीं है ।बल्कि मेरी अंगूठी देखकर आपकी नियत बिगड़ गई है। 
यज्ञदत्त ने कहा- यह अंगूठी मुझे राजा के यहाँं से इनाम में मिली है ,जिसे तुम ने चुरा ली ।
चोरी के आरोप लगने से जुआरी क्रोधित हो उठा और गरज कर बोला -मैंने आपकी अंगूठी नहीं चुराई बल्कि आप के पुत्र ने इसे मेरे पास जुए में हारा है। उसने मेरे पास बहुत सारे बहुमुल्य प्रसाधन भी हारा है ।आप जितने धर्मात्मा हैं ,आपका पुत्र उतना ही बड़ा बदमाश है ।लेकिन आप एक विद्वान होकर भी  अपने पुत्र के कारनामे को नहीं जान सके।
 जुआरी की बात सुन यज्ञदत्त का लज्जा के मारे सिर झुक गया।वे मुंह ढक कर घर पहुंचे और पत्नी से पूछा -गुण निधि कहांँ है , तथा वह अंँगूठी कहां है ,जो मुझे राजा के यहांँ से मिली थी  ? पत्नी ने कहा- वह अंँगूठी उबटन लगाते वक्त मैंने यहीं कहीं रखी थी ।यज्ञदत्त ने गुस्से में कहा -तुम झूठी हो ।जब कभी मैंने गुण निधि के बारे में पूछा तुमने टाल दी। फिर उन्होंने घर के सारे कीमती सामानों को गायब देखा तो हाथ में जल लेकर पत्नी और पुत्र को तिलांजलि दे दी और एक ब्राह्मण की कन्या से विवाह कर लिया ।जब गुणानिधि को पता चला कि उसके कुकर्मों के कारण पिता ने उसे और उसकी मां का त्याग कर दिया है तो अपनी करनी पर पछताता हुआ वह भूखा प्यासा एक शिव मंदिर के पास बैठ गया ।उस दिन शिवरात्रि का व्रत था। लोगों ने शिवजी का पूजन किया और तरह-तरह के पकवान चढ़ाए। फिर वे उस मंदिर में ही सो गए। उन्हें सोता देख गुणनिधि मंदिर में प्रविष्ट होकर शिवजी पर चढ़ाए गए प्रसाद को उठाकर बाहर भागा ।भागते समय उसका पैर एक शिवभक्त से टकरा गया ।उसकी नींद टूट गयी और वह चोर- चोर चिल्लाने लगा ।उसकी आवाज सुन सभी वक्त जाग गए और दौड़ कर भागते हुए गुणनिधि को पकड़ लिया और उसे इतना मारा कि वह वहीं पर मर गया ।उसे मरते ही यमदूत ने आकर उसे घेर लिया और उसे निर्दयता पूर्वक मारने लगे ।
उसी समय भगवान शिव ने अपने गणों से कहा -यद्यपि गुणनिधि बहुत पापी दुराचारी और कुकर्मी है ।फिर भी उसने शिवरात्रि का व्रत किया, रात्रि जागृत किया , हमारे पूजन को देखा, हमारे दर्शन किए और रात्रि में अपना वस्त्र फाड़कर दीपक में बाती डालकर लिंग के ऊपर गिरती छाया का निवारण किया है ।हमारे गुणों के प्रसंगों को सुनने का धर्म कार्य किया इसलिए वह हमारे लोक को आएगा। भगवान की आज्ञा प्राप्त कर उनके त्रिशूल धारी पार्षदों ने घटनास्थल पर पहुंचकर बोले- यमराज के गणों ! तुम अब इस परम धर्मात्मा ब्राह्मण को छोड़ दो। 
यमदूत ने कहा -यह तो दुष्ट महापापी, कुकर्मी मांस तथा मदिरा का सेवन करने वाला, पर स्त्री तथा वेस्यागामी है। माता- पिता की आज्ञा न मानने वाला चोर तथा जुआरी है ।इसलिए हम लोग इसे ले जाएंगे । यमदूतों की बात सुनकर शिव के पार्षदों ने कहा - यह पापी था किंतु उसका सबसे बड़ा कर्म यह है कि इसने पुराना कपड़ा जलाकर शिवालय में प्रकाश किया और रात्रि का जागरण किया ।शिवालय के द्वार पर बैठकर भगवान सदा शिव का पूजन को देखा और हरि कीर्तन को सुना ।इसलिए भगवान  सदाशिव की इच्छा अनुसार यह दोष रहित और पाप मुक्त हो गया।अब यह हमारे साथ जाएगा।
 यमदूतों ने कहा-आपकी आज्ञा सिर आंँखों पर। इतना कह कर यमदूत ने उसे छोड़ दिया।
सदाशिव के पार्षद उसे अपने साथ ले गए ।
यमदूतों ने जाकर सारा वृत्तांत यमराज से कहा। जिसे सुन यमराज ने कहा -जो व्यक्ति भस्म रमाए हुए हो , रुद्राक्ष की माला धारण किए हो , शिवलिंग का पूजन करता हो ,छल से ही सही -शिव का गुणगान करता हो, चोरी से ही सही शंकर भगवान का प्रसाद ग्रहण करता हो ,उसके पास भूल कर भी नहीं जाओ। यह कहकर यमराज ने भगवान सदाशिव को प्रणाम करते हुए कहा -हे प्रभु !हमारे पार्षदों के इस अनजाने दोष को क्षमा कर दें । यमदूतों से मुक्ति पाकर गुणनिधि श्री शिवलोक को गया और  कुछ दिन सुख भोग कर कलिंग देश के राजा इंद्रमणि के पुत्र अरिंदम के नाम पर जन्म लिया ।अरिंदम भगवान शिव  का अनन्य भक्त था। महाराज इंद्रमणि अपने पुत्र में उदारता, वीरता धीरता और गंभीरता इत्यादि गुण देखकर उसे राज्य पाठ देकर तप करने वन चले गए ।सिंहासनारूढ़ होते ही अरिंदम ने प्रजा को आज्ञा दी कि सभी लोग प्रतिदिन शिवालयों में दीप प्रज्वलन करें ।उनकी इस आज्ञा से राज्य भर के समस्त शिवालय प्रकाश से जगमगा उठे। राजा अरिंदम ने अपने न्याय से प्रजा को प्रसन्न किया तथा दीर्घकाल तक राज्य का सुख भोग कर शिवलोक को गया।ब्रह्मा जी कहते हैं -हे नारद ! शिवजी की थोड़ी सेवा भी बहुत फलदायक प्रमाणित होती है ।यज्ञदत्त के पुत्र गुणनिधि का यह चरित्र जो सुनेगा उसकी समस्त कामनाएं पूर्ण होगी और उसके मन को बड़ा संतोष प्राप्त होगा तथा वह अपने जीवन में सदा सुखी एवं प्रसन्न रहेगा।

 बोलो -सदाशिव शंकर भगवान की जय!
उमापति महादेव की जय !

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित (शिव जी की महिमा पर आधारित)

Wednesday, February 23, 2022

वसंत-बहार

वसंत बहार

सखी धरती पर आयी बहार देखो।
छायी चारों दिशा में निखार देखो।

देखो सरसों की हरी-हरी डाल में,
लगे सुंदर हरे-हरे पात हैं।
संग मुस्काती पीले-पीले फूल हैं,
हँस-हँस हमसे करते बात हैं।
छिमियों में सरसों के दाने,
लगे पौधों में गूंथे हैं हार देखो।
छायी चारों दिशा में निखार देखो।

हम अंग में पीत वस्त्र पहने,
सिर पीली चुनरिया ओढ़कर।
आ संग-मिल हम भी नाचे,
आज लाज की घूंघट छोड़ कर।
खनकती हाथों में देखो चूड़ियाँ,
करता पायल पांव झंकार देखो।
छाई चारों दिशा में निखार देखो।

कोई कह दो वसंत से जाकर,
अभी उसको यहांँ से जाना।
कुछ दिन और धरा पर ठहरे,
अभी ढूंढे ना कोई ठिकाना।
प्रिय वसंत से भौरे-तितलियां,
रुक जाने को करते मनुहार देखो।
छायी चारों दिशा में निखार देखो।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, February 18, 2022

सरसों के फूल, गीत ( मगही भाषा )

सरसों के फूल
 ( गीत ,मगही भाषा )

गाँव में गेलियै घूमें खेत।
पाँव में लगलै माटी रेत।
वहमां पनियां में मोर चुनरिया भिंजलै ना।।

लेके घूमें के हुलास।
गेलियै सरसों के पास।
ओकर पौधबा में मोर अचरिया फँसलै ना।।

पीयर सरसों के फूल।
रहलै हवा संग झूल।
जेकरा देखी कर हमर मनमा बिहसै ना।।

होइते जड़बा के अंत।
अइलै झूम के वसंत।
चहूं दिशी सरसों फूल के महकिया उड़ै ना।।

सरसों फूल पर हजार।
भौंरा  करै गुलजार।
ओकर मीठा-मधुर गीतिया सोहाबन लागै ना।।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, February 17, 2022

सुनो सखी

सखी सुनो

शीला-
सखी सुनो मेरी यह बतिया।
नींद नहीं मोहे आती रतिया।
परीक्षा सिर पर आन पड़ी है।
लगती यूं मुश्किल की घड़ी है।
एक इस बार पाठ बहुत है भारी।
ऊपर से यह कोरोना महामारी।
बंद रहे हमारे इतने दिन कालेज।
आन-लाइन में ना मिलता नालेज।
हमारी परीक्षा कैसे पार लगेगी।
बता कैसे हम-सब पास करेंगी ?
सुशीला-
ऐ सखी सुनो तुम ना घबराओ।
हाँ नियम बनाकर पढ़ती जाओ।
मेहनत का फल जरूर मिलेगा।
उत्तीर्णता का प्रसून खिलेगा।
माना मुश्किल की घड़ी आयी।
घंटा खुशियों पर बनकर छायी।
फिर भी हम सबको पढ़ना होगा।
और राह नयी नित गढ़ना होगा।
भाग रहा अब कोरोना महामारी।
आएगी वापस अब खुशियां सारी।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, February 14, 2022

पुलवामा आक्रमण के समय लिखी एक रचना

दुशमन ने ललकारा है।----------------

हथियार उठाकर बढ़ जा वीरों,
दुशमन ने ललकारा है।
गीदड़दिली हमला कर उसने,
जावाँज शेरों को मारा है।।

अपनी सीमा को शत्रुदल,
जब कभी करता हो पार।
पुरुष सिंह तुम काल बनकर,
करता जा दुशमन पर वार।
चौवालिस गुणा चौवालिस मारो,
यही हमारा नारा है।

गरज रहा है चहु दिशा से,
भारत का विजयी हुँकार,
मातृभूमि की रक्षा खातिर।
करने को जीवन न्यौछार।
रुके नहीं अभियान हमारा,
यह संकल्प हमारा है।

पाकिस्तानी भूले से भी,
कदम रखे कश्मीर में।
तीर उठाकर उसको मारो,
या जकड़ो जंजीर मे।
आँख उठाकर इसे न देखे,
यह कशमीर हमारा है।

सुजाता प्रिय, समृद्धि,राँची🙏

Sunday, February 13, 2022

मन का विश्वास

मन का विश्वास

मन में है विश्वास अगर,सब काम सफल हो जाएगा।
विजय पताका पास तुम्हारे,समय सदा फहरायेगा।
विजय पताका पास...........
दृढ़ हृदय से लक्ष्य पथ पर,पग-पग तुम बढ़ते जाओ।
दुर्गम पथ को सुगम बनाकर, सुंदर पथ गढ़ते जाओ।
हिम्मत-ताकत भी मेहनत से तुमको मिलता जाएगा।
विजय पताका पास................
अपनी शक्ति और लगन पर सदा ही तुम विश्वास करो।
कोई हमारी मदद करेगा,भूल नहीं एहसास करो।
अपने बाहुबल से ही,सहयोग तुझे मिल जाएगा।
विजय पताका पास.................
तुम भी ऊपर चढ़ सकते हो,रखो यह मन में विश्वास।
तुम भी आगे बढ़ सकते,चलो सदा यह लेकर आस।
विश्वास भरा यह कदम तुम्हारा कभी न रुकने पाएगा।
विजय पताका पास..........
मन के सब संताप मिटाकर,कर्म सदा करते जाओ।
कर्म से अपने भाग्य बनाओ,मुश्किल में न घबराओ।
कर्म तुम्हारे अच्छे हैं तो,सौभाग्य तुझे मिल जाएगा।
विजय पताका पास.................
बढ़े चलो तुम बढ़े चलो, रुकना तेरा कर्म नहीं।
कर्म पथ से मुँंह मोड़ना, कर्मवीर का धर्म नहीं।
बढ़ते जाओ अगर सदा तुम,लक्ष्य तेरा मिल जाएगा।
विजय पताका पास..............
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, February 10, 2022

मत बेचो वसंत

मत बेचो बसंत

 गांव की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर चली जा रही रागिनीजी की नजरें खेतों की क्यारियों में लगे रवि फसलों के लहलहाते पौधों पर टिकी थी।उन लहलहाते पौधों को देख उनके मन में एक अलग प्रकार का उमंग भर आया । बसंती हवा की सरसराहट के साथ पौधे इस प्रकार झूम रहे थे जैसे बसंत के आगमन पर अपना मनमोहक नृत्य प्रस्तुत कर रहे हों। वह स्वयं ही उस मनमोहक दृश्य को देखकर मंत्रमुग्ध थी। खेतों में सरसों के पीले फूलों को देख मन में एक अजीब स्फुरन हो रहा था। एक अजीब-सा खुशनुमा माहौल छाया था गाँव में। खेतों की क्यारियों में रवि फसल के पौधों को देख ऐसा लग रहा था, जैसे धरती ने अपने अंग में हरे मखमल के  दुशाले ओढ़ लिये हों । मौसमी फूलों की भीनी-भीनी खुशबू और उन पर मंडराते भौंरों को देख ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे वे उन मनमोहक स्वरूप को, उसके लावन्य को आत्मसात कर लेना चाहते हों।अब वे अपने बगीचे में पहुंच गईं। अनायास पक्षियों के झुण्ड ने अपने किलोल से उसे अपनी ओर आकृष्ट किया।वह उधर देखने लगी। चिड़ियों  ने चहककर डाली को झकझोरा।डाली में लगी मंजरियों को देख उनकि मन-मयूर नाच उठा। इस बार अच्छे फल लगने के आसार हैं।यह विचार आते ही अपराध-बोध से उसका मन भर उठा। आखिर क्यों वह इन खेतों को, बेचना चाहती है। क्यों बगीचे के पेड़ों को कटवाना चाहती है। सिर्फ मन के जलन से कि इन्हें जेठानी के बेटे भोगेंगे। आखिर जेठानी और उनके बेटे के गांव में रहने पर ही तो हमारा गांव में आना और इन मनोहारी दृश्यों के दर्शन हो पाते हैं। हम तो शहर में आलिशान महल में रहते हैं। मुझे बेटे नहीं हैं तो क्या हुआ। जेठानी के बेटे भी तो,बेटे का शौक पूरा करते हैं।मेरी बेटियों के भाई तो वहीं हैं ।उन्हें क्या कमी ? दोनों बेटियां डाक्टर-इंजिनियर हैं।
    उसे पति ने कितनी बार मना किया था। गांव के खेत और बगीचे हमारे जीवन के बसंत हैं ।हम उन्हें नहीं बेचेंगे। लेकिन उसका मन........ओह वह परेशान-सी अपने लियावन के लिए आती जेठानी को देखकर बुदबुदा  उठी -हाँ-हाँ हम नहीं बेचेंगे अपना वसंत।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, February 6, 2022

रूप बदलते चंदा मामा

रूप बदलते चन्दा मामा

             आंगन में 
        एक खाट पड़ी थी।
उसके ऊपर इक टाट पड़ी थी।
               रात को 
      उसपर मैं सो रही थी।
मीठे -स्वप्नों में मैं खो रही थी।
            चंदामामा 
      आये हैं आंगन मेरे।
मेरी ओर अपना मुखड़ा फेरे।
            कर रहे 
    हैं हंस वे मुझसे बातें।
शिकायत मेरी क्यों ना आते।
          उसी समय
       टूट गई मेरी नींद।
सुस्वप्न टूट जाने की मानिंद।
             ढूंढ़ी चंदा
        को मैंआंखें खोल।
इत-उत हथेलियों से  टटोल।
             अनायास
        ऊपर उठीं निगाहें।
रुक गई  मेरी टटोलती बाहें।
           आसमां में 
        तारे विचर रहे थे।
चम-चम करते निखर रहे थे।
             चंदामामा 
         भी थे उनके साथ
   हंस-हंस उनसे कर रहे बात।
               खेल रहे
       थे लुक छिप खेल।
इक- दूजे से वेे रखकर मेल।
             चंदामामा
        का देख आकार।
मेरे  मन में यह उठा विचार।
          कहां छुपाये
        हैं वे आधा अंग। 
किसी के प्रहार से हुए हैं भंग।
             एक रात 
      देखी मैं हंसियाकार।
   एक रात दिखते थे जैसे तार।
               एक रात 
       रूप था गोल-मटोल।
आज मैं इनकी खोलूंगी पोल।
               मां  से 
       पूछा मैंने  इसका राज।
 चंदामामा आधा क्यों है आज।
              मां बोली
       चंदा बड़ा है नटखट।
रूप बदलता रहता है झटपट।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
          स्वरचित, मौलिक

Saturday, February 5, 2022

सरस्वती वंदना ( मगही भाषा )



सरस्वती वंदना ( मगही भाषा )

वीणा बाजे रे, सरस्वती माय के द्वार में।
मनमा नाचे रे, उ वीणा के झंकार में।

रोज मैया के ध्यान लगैबै,
चरनियां में सिर नवा के।
मैया हमरा देथिन आशीष
दुनु हथबा उठा के।
हमर आस पुरैहा मैया,
विद्या-बुद्धि वरदान दे।
जीवनमा संवरे रे, मैया के दुलार में।
वीणा बाजे ये,................

सरस्वती मैया,होवा सहैया,
हमरा तूं वरदान दा।
हम मुरख-अज्ञानी मैया,
हमरा सच्चा ज्ञान दा।
विद्या दायिनी मैया मोरी,
इहे हमर अरमान है।
झूम-झूमके नाचूँ रे, मैया तोहर प्यार में
वीणा बाजे रे,.....................
            सुजाता प्रिय समृद्धि

Thursday, February 3, 2022

छोटे बच्चों की छोटी सरस्वती मां



 छोटे भक्तों की छोटी सरस्वती मां

रविवार की छुट्टी चंदा देने में ही गुजर गया। दसवीं बार चंदा देकर लान में बैठी और उनके द्वारा चंदा के ज्यादा पैसे देने का आग्रह, मनुहार, दबाव सभी बातें याद कर झल्ला रही थी कि फिर किसी ने होले-होले गेट बजाएं ।मैंने नजरें उठाकर गेट की ओर देखा, कोई नजर नहीं आया ।मैं अपने मन का वहम समझकर नजरें नीची कर ली। फिर वह गेट बजने के ठक ठक ठक  इस बार मैं उधर देखी तो बहुत ही मधुर आवाज में किसी बच्चे ने पुकारा आंती ! मैं सोची शायद बगल का बच्चा होगा। बोली अंदर आओ ।तुरंत गेट खोल कर पांच से सात साल के छः -सात अनजाने बच्चे अंदर प्रविष्ट हो गए ।
मैंने आश्चर्य से पूछा क्या बात है ? उन्होंने विनम्र स्वर में कहा चंदा दीजिए अंती।
मैंने उनसे पूछा -कहां का चंदा? एक बच्चे ने तुतलाते हुए कहा- छिछु-छंगम का। मैंने पूछा यह शिशु संगम कहां है ?
यह पलाथा फिल्द में है।
 मैंने कहा -तो तुम लोग को चंदा मांगने क्यों भेजा गया ?
भेदा नहीं गया। हम लोग अपने आए हैं ।
वहां पूजा कौन करेगा ?
हम लोग कलेंगे। 
तुम लोग इतने छोटे-छोटे बच्चे हो और पूजा करोगे।
 इतने छोटे होकर हम पलाई कलते हैं, तो छलछती मां की पूदा नहीं करेंगे ?
मैं सोची शायद उन लोग घर में पूजा कर रहे हैं ,या किसी समूह में शामिल होंगे । इसलिए चंदा देने के लिए उठी ।क्योंकि मेरा मानना है कि यदि हम चंदा नहीं देंगे तो इतने भव्य श्रृंगार -सज्जा के साथ कोई एक व्यक्ति पूजा कैसे करेगा आखिर पूजा में घूमने का आनंद और मां सरस्वती  के दर्शन और प्रसाद ग्रहण करने हम भी तो जाते हैं ।इसलिए यथासंभव चंदा देकर सहायता तो हमें भी करना चाहिए ।
मैं जानती थी कि कितना भी चंदा दो उसमें वृद्धि के लिए वे जरूर कहेंगे ।इसलिए दस दस के कुछ नोट और एक के कुछ सिक्के हाथ में लिए उनके पास आए और ₹11 बढ़ाती बोली लो चंदा।
इतना थे क्या होगा आंटी ?एक ने मुस्कुराते हुए कहा 
क्यों नहीं होगा तुम छोटे हो ।
नहीं आंटी और दीजिए दूसरे ने कहा।
 कितना दूं  ?दस रुपए और दे दूं ?
 नहीं कुछ औल।
 कितना 10 और ?
नहीं उसने ठुनकते हुए कहा ।
मैंने हंसते हुए उन नन्हे- मुन्ने शिशुओं को निहार रही थी ।
उनमें से एक ने कहा -आंती मैं इंछाफ की बात कहता हूं ।हम छभी के हाथों में आप ग्यारह-ग्यारह रुपए दे दीजिए ।
उनकी तोतली इंसाफ से मुझे बहुत हंसी आई और मैंने सब को ग्यारह-ग्यारह रुपए पकड़ा दी ।
वे खुशी-खुशी चले गए 
मूर्ति विसर्जन के दिन हाथ में कैमरा लेकर मैं गेट पर खड़ी होकर सरस्वती माता की मूर्तियों का विसर्जन हेतु ले जाते देख रही थी ।क्योंकि सारी मूर्तियां मेरे घर के सामने से ही गुजरती थी अचानक शिशुओं के दल ने आकर कहा आंती! प्रसाद ले लीजिए। मैंने हाथ बढ़ाकर प्रसाद ले लिया ।चंद दाने इलायचीदाने में जो श्रद्धा उमड़ी वह लड्डू -बूंदी वाले प्रसाद में भी नहीं ।तभी उनमें से एक ने कहा देखिए आंती हमारी सरस्वती मां।
 मैंने देखा एक ठेले पर मात्र 2 फुट की सुंदर -सलोनी सरस्वती मां हाथों में छोटी वीणा लिए होठों पर स्निग्ध मुस्कान लिए मुस्कुरा रही हैं ।मैं अवाक देखती रह गई। उनमें से एक ने कहा देखिए आंटी आपने कहा हम छोटे-छोटे बच्चे पूदाा  कैछे करेंगे ?लेकिन किए ना। मुझे याद आया मैं कैमरा लेकर आई थी मैं झट छोटी सरस्वती मां के साथ छोटे शिशु के फोटो खींचे और पूछा -कहां मूर्ति विसर्जन करोगे ?
उन्होंने कहा दैम में ।
तुम लोग डैम जाओगे ?मैं घबरा उठी 
हूं छोटा वाला डैम में।
फिर भी तुम लोग ग् ग्? मैं हकलाती हुई बोली तो ठेला चालक ने मुझे आश्वस्त करते हुए कहा नहीं मैं विसर्जन करूंगा। इन्हें पानी के पास नहीं जाने दूंगा। दूसरे साल वे चंदा मांगने आए तो अपना परिचय दिया जिनका आपने फोटो खींचा था ।वह बच्चे  प्रत्येक साल बड़े होते गए लेकिन चंदा मांगने के समय उनका परिचय वही था शिशु -संगम जिनका आपने फोटो खींचा था। और मैं दस साल बाद भी उन बढ़ते बच्चों की बड़ी होती सरस्वती प्रतिमा को देख खूब हंसती हूं।
 सुजाता प्रिय समृद्धि

Wednesday, February 2, 2022

बारात वसंत की



बारात वसंत की

मौसम की पालकी पर सज-सँवरकर ।
आया है वसंत देखो जी दुल्हा बनकर। 

नव पल्लवों ने हैं वंदनवार सजाए।
मंजरियों ने हैं स्वागत द्वार सजाए।

कोयल गा रही  देखो स्वागत गान।
भौंरों ने भी छेड़े हैं मीठे प्यारे तान।

पंखुड़ियों  की प्यारी घुंघट डाल।
फूलों ने देखो  पहनाये जयमाल।

पलास सिर पर तिलक लगाकर।
नव -कोंपलों से लाया परछकर ।

बेला -गुलाब जूही चंपा-चमेली ।
आगे बढ़कर कर रही  ठिठोली।

चिड़ियाँ चहकी कलियाँ महकी।
चली हवा कुछ बहकी - बहकी।

पत्ते बजा रहे हैं झूमकर ताली।
थिरक-थिरक कर डाली-डाली ।

जन- जन का अब मन है हर्षित।
सरस-सलिल जीवन है पुलकित।

           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
             स्वरचित, मौलिक