वसंत बहार
सखी धरती पर आयी बहार देखो।
छायी चारों दिशा में निखार देखो।
देखो सरसों की हरी-हरी डाल में,
लगे सुंदर हरे-हरे पात हैं।
संग मुस्काती पीले-पीले फूल हैं,
हँस-हँस हमसे करते बात हैं।
छिमियों में सरसों के दाने,
लगे पौधों में गूंथे हैं हार देखो।
छायी चारों दिशा में निखार देखो।
हम अंग में पीत वस्त्र पहने,
सिर पीली चुनरिया ओढ़कर।
आ संग-मिल हम भी नाचे,
आज लाज की घूंघट छोड़ कर।
खनकती हाथों में देखो चूड़ियाँ,
करता पायल पांव झंकार देखो।
छाई चारों दिशा में निखार देखो।
कोई कह दो वसंत से जाकर,
अभी उसको यहांँ से जाना।
कुछ दिन और धरा पर ठहरे,
अभी ढूंढे ना कोई ठिकाना।
प्रिय वसंत से भौरे-तितलियां,
रुक जाने को करते मनुहार देखो।
छायी चारों दिशा में निखार देखो।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
रुक जाने को मनुहार देखो। अति सुंदर ।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteसुन्दर गीत
बहुत सुंदर गीत
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