बारात वसंत की
मौसम की पालकी पर सज-सँवरकर ।
आया है वसंत देखो जी दुल्हा बनकर।
नव पल्लवों ने हैं वंदनवार सजाए।
मंजरियों ने हैं स्वागत द्वार सजाए।
कोयल गा रही देखो स्वागत गान।
भौंरों ने भी छेड़े हैं मीठे प्यारे तान।
पंखुड़ियों की प्यारी घुंघट डाल।
फूलों ने देखो पहनाये जयमाल।
पलास सिर पर तिलक लगाकर।
नव -कोंपलों से लाया परछकर ।
बेला -गुलाब जूही चंपा-चमेली ।
आगे बढ़कर कर रही ठिठोली।
चिड़ियाँ चहकी कलियाँ महकी।
चली हवा कुछ बहकी - बहकी।
पत्ते बजा रहे हैं झूमकर ताली।
थिरक-थिरक कर डाली-डाली ।
जन- जन का अब मन है हर्षित।
सरस-सलिल जीवन है पुलकित।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
पूरा बसंत कविता में उतार आया । बहुत खूब।
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (03-02-2022 ) को 'मोहक रूप बसन्ती छाया, फिर से अपने खेत में' (चर्चा अंक 4330) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत सृजन
ReplyDeleteवाह!सखी बहुत खूब बसंत अगर दुल्हा हैं तो बाराती धराती सब मनमोहक होंगे ही।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
वाह बारात बसंत की अनुपम रचना
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