राम-सीता विवाह प्रसंग
दोहा-चौपाई
छंद-जनवासे से नाचते गाते जब बारात पहुंची जनक के द्वार।
सुनयना संग जनकपति के मन में भरी खुशियां अपार।
देख राम के अंग सुकोमल परिजन सभी पुलकित भये।
गायी सुमंगल-गान सखियां,देवगण हर्षित हुए।
चौ.-सखियां मिलकर सिया को लाई।सिया-राम की जयमाल कराई।
कंचन थाल कपूर की बाती।अक्षत चंदन रख वेल की पाती।
सात सुहागिन मिल आरती उतारी। रामचन्द्र की ले बलिहारी।।
पान पत्र से गाल सेक कर।मातु सुनयना उन्हें परछकर।।
वर-वधू को मंडप में लाई।चंदन पिढ़िया पर बैठाई।।
अग्नि-कुण्ड को साक्षी रखकर। सियाराम को दिलवाए भांवर।।
सात फेरों संग वचन दिलाए। दाम्पत्य जीवन की पाठ पढ़ाए।।
हाथ सिंदूर-कीया पकड़ाए। सीताजी की मांग भराए।
दो.-इसी विधि सीता की बहनों के विवाह हो गये साथ।
भरत-माण्डवी,लक्ष्मण-उर्मिला, शत्रुघ्न- श्रुतिकृति के पकड़े हाथ।
चार जोड़ियों से मण्डप की शोभा बढ़ी अपार।
ऋषि-मुनि-गुरू आशीष दे, करने लगे जयकार।
सियापति रामचंद्र की जय🙏🙏
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स्वरचित मौलिक
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
१८/०७/२०२१
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