राम-सीता बारात विदाई प्रसंग
घनाक्षरी-(भये प्रगट कृपाला दीन दयाला)
बारात विदाई,की घड़ी आई, सर्वत्र उदासी छाई।
लक्ष्मण-रघुराई,चारों भाई, करवाने आये विदाई।
मातु सुनयना,जल भर नयना, रामचंद्र से बोली।
मेरी चारों कन्या, हैअनन्या,मन की है अति भोली।
हे सुरनायक,जन-सुखदायक,जग के आप विधाता।
धन्य भाग्य हमारे, हैं अति प्यारे,बने आप जमाता।
मेरी बिटियां रानी,अति स्यानी,गुण-सम्पन्न अभिमानी।
हैं बड़भागी,मन-अनुरागी,बनी रघुकुल की बहुरानी।
बेटियों को खोइछा,बहु-विधि शिक्षा,दे बार -बार समझाई।
तुम चारों बहना, रघुकुल की गहना,ससुर पिता,सासु हैं माई।
बहनों संग सीता,परम पुनीता,बिलख-बिलख कर रोई।
हम सबको माई, क्यों जन्माई, पाल-पोस क्यों खोई ?
रख दिल पर पत्थर,कुशध्वज रोकर,बेटियों को समझाए।
यही जंग की रीति, इसी में है प्रीति, ससुर घर तुझको भाए।
दो.-एही विधि सबसे विदाई लेकर,वापस हुई बारात।
चार बहुओं की डोली ले,चले सब दशरथ के साथ।
सियापति रामचंद्र की जय🙏🙏
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