१८/०७/२१
जन रामायण
राम बारात स्वागत
हरिगितिका छंद(श्रीराम चन्द्र कृपालु भजमन)
बारात देख, मिथिला नरेश, मर्यादा अपना छोड़कर।
हो भाव विह्वल जा मिले वे कोश भर से दौड़ कर।
बढ़कर सभी बारातियों की, आगवानी वे करने लगे।
मन में हुलस रोमांचित हो सबके गले मिलने लगे।
पुष्प-माला पहना गले,मस्तक लगा कुमकुम तिलक।
करबद्ध प्रणाम कर संग लाए,मन- मुदित होकर पुलक।
बैठाए जनमासे में लाकर,सबको उचित स्थान दे।
स्वादिष्ट सुगंधित मन -मोहित मंगल सगुण मिष्ठान दे।
सुदर-सुहावन वस्त्र और गहने विविध प्रकार दे।
बहुमुल्य मणियां, जवाहरात-हीरे को मधुर उपहार दे।
पुष्प वर्षा कर सुंदरियां,स्वागत- गीत गाने लगी।
हंसी-ठिठोली कर बारातियों को, उपालम्भ सुनाने लगी।
नाचते बन नार, किन्नर,ठुमक-ठुमक मन मोहते।
बारातियों की दुल्हनें बन संग बैठकर शोभते।
छंद -इस विधि बहुत आनंद से,जनवास में वे सुख से रहे।
शुभ-विवाह की घड़ी वे,विवाह-स्थल सज-धज चले।
सियावर रामचन्द्र की जय
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
राम जी की बहुत ही सुन्दर विवाह गीत,सादर नमन सुजाता जी
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (07-12-2021 ) को 'आया ओमीक्रोन का, चर्चा में अब नाम' (चर्चा अंक 4271) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जय श्री राम
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