बारात आगमन। बोल (नमामीश मीशान निर्वाण रूपम)
जनकपुरी में बारात आई। देवगणों ने दुंदुभी बजाई।।
पुत्र-विवाह की लेकर मनोरथ।आये अयोध्या के राजा दशरथ।।
तीन अनुज संग आये रघुराई।दो सांवरे और दो गोरे भाई।।
देवों के देव गणेश पधारे। ब्रह्मा-विष्णु महेश पधारे ।।
गुरु विश्वामित्र,वशिष्ठ जी आये। ऋषि-मुनि संत विशिष्ट भी आये।।
अनेक महीपति सुरपति आये। पुरोहित, मित्र, अधिपति आये।।
आए सभासद,नगरपुरवासी। सहस्त्र सेवक दास और दासी।।
मोती-माणिक्य से सजे गज प्यारे।सात घोड़ों से सजे रथ सारे।।
रंग-बिरंगी बाती जली है।चौमुख दीपों की पाती सजी है।।
हंस-मयूर की नाच मनोहर।झूम रहे नागरी खुश हो कर।।
आतिशबाजियां और आसमान तारे।फूटे पटाखे सुंदर नजारे।।
बाजत पन्नव, झांझर प्यारे।शंख,निशान और ढोल-नगाड़े़।।
दसो दिशा में ध्वज लहराए।भगवा पताके गगन फहराए।।
सभी हैं प्रफुल्लित, सुहानी है बेला। जनकपुर सजा है लगी जैसे मेला।।
राम बारात दल-बल सहित शोभा अपरम्पार,
मानुष पशु-पक्षी गण जीव सभी आनंद भए।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
मनभावन सृजन
ReplyDelete