सखी री ! सावन में अइलै बलमुआ,
जिया हरसे री सखी।
सखी री ! रिमझिम बरसे सवनमा,
जियरा हरसे थी सखी।
हरियर साड़ी और बिंदी ले अइलै।
कान के झुम्मक और नथुनी ले अइलै।
सखी री !हाथ के लइलै कंगनमा,
जियरा हरसे री सखी !
बगिया में पिया जी झूला लगैलै।
संग में बैठाई के खूब झुलैलै।
सखी री ! गाके फिलिम के गनमा,
जिया हरसे री सखी !
खीर-पूड़ी, हलुआ, जलेबी बनैलियै।
सासु-ससुरजी के संग में खिलैलियै।
सखी री!मीठा-मीठा सभे भोजनमा,
जिया हरसे थी सखी !
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-8-21) को "रोपिये ना दोबारा मुट्ठी भर सावन"(चर्चा अंक- 4150) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
जी सादर धन्यवाद आ.कामिनी जी।
ReplyDeleteमनमोहक गीत!
ReplyDeleteहार्दिक आभार बहना !
Deleteमुग्ध करती रचना - - नमन सह।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteआभार सखी !
Deleteमन मुग्ध करती सुंदर सजीली कजरी।
ReplyDeleteशुक्रिया सखी !
Deleteवाह बहुत खूब।
ReplyDeleteजी सादर आभार।
Deleteबेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ।
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