बाबा जी के खेतबा में,बरसे सवनमा।
खेतबा जोता हो किसनमा।
खेतबा जोतिए जोती,मेड़िया बनाबा,
चारों ओरी एक रे समनमा।
मेड़िया के ओते-ओते पनियां पटाबा,
भरी-भरी एक रे टेहुनमा।
पनिया के बीचे-बीचे,हरियर मोरिया,
धनमा रोपा हो किसनमा।
धनमा रोपाई जब सारी भुवनमा,
रही-रही हुलसे मोर मनमा।
मनमा हुलसे मोर,हिय मोर हलसे,
गूंजे मोर मन में गीत गनमा।
अबरी अगहनमा में उपजत धनमा,
शोभतै खेत -खरिहनमा।
धनमा से भरी जैइतै बाबा के अंगनमा।
साल भर होइतै भोजनमा।
साल भर होइतै भोजनमा।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
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