मिटाकर तुमने हमें तमाम।
लो यह देख लिया अंजाम।
जंगल के वृक्षों को काट।
लताओं-झाड़ियों को छांट।
दिए तुम मरूभूमि में पाट।
महल बनाकर करते ठाट।
काट वृक्षों को कियेआराम।
लो यह देख लिया अंजाम।
देख प्रकृति है तुझसे क्रुद्ध।
काम किए हों इसके विरुद्ध।
पर्यावरण को कर अशुद्ध।
वायु के लिए कर रहे युद्ध।
कभी न रखे इसपर ध्यान।
लो यह देख लिया अंजाम।
आया समय बड़ा विकराल।
बीमारी बनकर आया काल।
पहुंच रहे हो सभी अस्पताल।
नाकों में आक्सीजन डाल।
तड़प रहे अब सुबह-शाम।
लो यह देख लिया अंजाम।
अगर धरा पर वृक्ष लगाते।
थोड़ी छाया का सुख पाते।
पौष्टिक मीठे फल भी खाते।
सांसों में शुद्ध वायु भी पाते।
सब बातों से रहकर अंजान।
लो यह देख लिया अंजाम।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
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