हे महावीर त्रिशला के नंदन।
हाथ जोड़ कर तुझको वंदन।
सिद्धार्थ पिता के पुत्र वर्धमान।
जैन के अंतिम तीर्थंकर महान।
सत्य का आज हुआ घोटाला।
झूठ-फरेब का है बोल-बाला।
तेरे सिद्धांतों पर हम चलते।
मक्कारी नहीं हृदय में पलते।
अहिंसा के यदि पाठ हम पढ़ते।
हिंसा के हम पथ पर नां चलते।
दुनिया में अब आतंक ना होता।
निर्भय होकर हर मानव है सोता।
अगर औचर्य का मार्ग अपनाते।
सबको सुख दे, स्वयं सुख पाते।
कहीं नहीं होता अब भ्रष्टाचार।
मुसीबत में नहीं घिरता संसार।
ब्रम्हचर्य को जीवन में हम लाते।
जनसंख्या को नियंत्रित कर पाते।
यहां न करता कोई भी व्यभिचार।
बहनों का न कभी होता बलात्कार।
अपरिग्रह की अगर लेते हम शिक्षा।
'मैं'और 'मेरा'की मिटाने की दिक्षा।
देश की गरीबी हम हैं दूर भगाते।
अमीर-गरीब का सब भेद मिटाते।
जीओ और जीने दो का सिद्धांत।
अपनाकर मन यह हम करते शांत।
हे भगवान हमारे महावीर वर्धमान।
आवश्यकता तेरी चाहता वर्तमान।
स्वरचित, मौलिक
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
रांची, झारखण्ड
बहुत बहुत आभार सखी । मेरी रचना को साझा करने के लिए।
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