अपने चेहरे पर रखकर हाथ।
मुनियां रानी ने ढक लीं आंख।
जिज्ञासा वश कलम को खोली।
स्याही को कापी पर उढ़ेली।
तभी वहां पर पिताजी आये।
शरारत देख फटकार लगाए।
बिटिया तुने क्या कर डाला।
सारे पन्ने को कर दी काला।
डर से उसका मन घबराया।
नयनों में उसके भय समाया।
अनजाने में काम बिगाड़ी।
कलम से गिरी स्याही सारी।
मन-ही-मन में बोली बात।
छुपी नज़रों में थी जज़्बात।
अपराध बोध मन में आया।
उसने दांतों से जीभ दबाया।
आंखें ढक कर मांगी माफी।
पिताजी माफ़ करो गुस्ताखी।
देख पिता का मन भरमाया।
उठा बिटिया को गले लगाया।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
बच्ची की शरारत और डांट का भय सभी भाव सहजता से लिखे हैं । शब्दों के लिंग भेद सही होते तो और खूबसूरत हो सकती थी रचना ।
ReplyDeleteजैसे काम के लिए बिगाड़ी / बिगड़ा
जीभ के लिए दबाया / दबाई ।
वैसे तुक मिलाने के लिए कवि को थोड़ी आज़ादी तो होती है फिर भी कोशिश होनी चाहिए कि सही लिखा जाय ।
जी आपके सुंदर सुझाव के लिए आभारी हूं। वो क्या होता है न कभी प्रदत्त विषय पर समय सीमा तक लिखना होता है तो जल्द शादी में शब्दों की बारिकियों पर ध्यान नहीं जाता। सराहना सभी कर देते हैं लेकिन भाषा की सुगमता के लिए सुधार सुझाव आप जैसे महान लोग ही थे पाते हैं।सादर धन्यवाद
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