झूला लगा कदम की डाली,
झूल रही मैं मधुवन में ।
चलती मधुर-मधुर पुरवाई,
मस्ती छाई तन-मन में।
आया सावन बड़ा सुहावन,
हरियाली छाई।
देख घटा का रूप सलोना,
मन में मैं हरषाई।
नभ की छटा बड़ी मनभावन,
खुशियाँ' लायी जीवन में।
झूला लगा कदम की डाली,
झूल रही मैं मधुवन में।
ओ रे साजन तू भी आजा,
संग-संग हम झूलें।
दोनो मिलकर पेंग बढ़ाकर,
गगन को जा छू लें।
चल अम्बर में विचरण कर लें,
उमंग लेकर चितवन में।
झूला लगा कदम की डाली,
झूल रही मैं मधुवन में।
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (१८-०७-२०२०) को 'साधारण जीवन अपनाना' (चर्चा अंक-३७६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी! मेरी रचना को साझा करने के लिए आभार।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteसादर धन्यबाद आदरणीय
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद।
Deleteवाह!सखी ,बहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
ReplyDeleteझुला और साजन से मनुहार | बहुत मनभावन रचना सखी !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
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