छोटे- छोटे दुःखों को संताप ना कहो।
जिंदगी' वरदान है अभिशाप ना कहो।
समझो कभी ना ये कि भार है ये जिंदगी।
ईश्वर का दिया हुआ उपहार है ये जिंदगी।
कभी भी तुम इसको श्राप ना कहो।
जिंदगी वरदान है अभिशाप ना कहो।
हालात को सुधारकर जिंदगी सवार लो।
मेहनत के कूचे से इसको निखार लो।
भूले से भी इसको तू पाप ना कहो।
जिंदगी वरदान है अभिशाप ना कहो।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 13 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद दिव्या। मेरी रचना को सोमवारीय विशेषांक में साझा करने के लिए।
ReplyDeleteसकारत्मक कविता
ReplyDeleteसादर धन्यबाद।आभार।
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