द्वार - द्वार घुमती है गैया।
सारे जग की प्यारी मैया।
हर घर से मिलती एक रोटी।
बड़ी-छोटी और पतली-मोटी।
भूखी गाय उठा खा जाती ।
मुं, मुं कर संदेश सुनाती।
मिलतीे है तो खा ही जाती।
रोटी हम को तनिक न भाती।
नाँद में मिलता भूसा-चोकर।
उसके खाती हूँ खुश होकर।
फल-सब्जी के छिलके दे दो।
बच जाए हल्के- फुल्के दे दो।
व्यर्थ कचड़े में नहीं सड़ाओ।
बदबू घर में मत फैलाओ।
हरी घास हम को है प्यारी।
उसकी टोह में फिरती मारी।
गली- सड़क पर हम हैं घुमती।
घास हमें अब कहीं न मिलती।
हे रोटी दाता थोड़ी घास लगा दे।
धरती पर अब हरियाली ला दे।
रोटी के बदले घास खिला दे।
और थोड़ा- सा जल पिला दे।
हम गऊओं का पेट भरेगा।
तुम को भी कुछ पुण्य मिलेगा ।
सुजाता प्रिय
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