परिवार की परिभाषा
परिवार की परिभाषा आज,
बदलती नजर आ रही है।
दो,चार लोगों की गिनतियों में,
सिमटती नजर आ रही है।
हम दो- हमारे दो को ही,
परिवार माना जाता है।
अन्य सभी रिस्तों को अब,
बेकार माना जाता है।
दादा- दादी,नाना- माना को,
पहचानते तक नहीं बच्चे।
चाचा- बुआ,मामा-मौसी को,
जानते तक नहीं बच्चे।
वैसे तो सभी रिस्तेदार ,
अब सबको होते नहीं हैं।
जिनको ईश्वर ने है दिया ,
वे रिस्ते अब ढोते नहीं हैं।
आधुनिकता व नगरीकरण ने,
सृजित किया एकल परिवार।
कयोंकि संयुक्त रूप से रहना,
आज लोगों को नहीं स्वीकार।
सुजाता प्रिय
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
धन्यबाद स्वेता।पाँच लिकों के आनंद पर मेरी रचना को सांझा करने के लिए।साभार।
ReplyDeleteबहुत सटीक और विचारणीय रचना।
ReplyDeleteधन्यबाद बहन।
Deleteसटीक
ReplyDeleteधन्यबाद भाई साहब।आभारी हूँ
Deleteसुंदर और सार्थक रचना
ReplyDeleteधन्यबाद बहन।नमस्ते।
Deleteबहुत सुंदर ,सटीक और यथार्थ रचना ,सादर
ReplyDeleteधन्यबाद बहन। आभारी हूँ।
Deleteबहुत ही सुन्दर सटीक एवं विचारणीय रचना...
ReplyDeleteलाजवाब...
धन्यबाद बहन देवरानीजी ।नमस्ते।
Deleteरिश्तों में स्वार्थ की घुसपैठ और अपनी निजी स्वतंत्रता की चाह ने संयुक्त परिवारों को तोड़ा और एकल परिवार बने। आने वाले समय में 'परिवार' शब्द ही हट जाएगा और सिर्फ 'एकल' यानि अकेला रह जाएगा इंसान...
ReplyDeleteजी नमस्ते।परिवार का महत्व व मान-मर्यादा को नहीं समझता गया तो परिस्थिति कुछ ऐसी ही आने की आशंका है।
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