Thursday, May 16, 2019

छाया

छाया

कहाँ  पाएँ  हम  थूप में  छाया।
कैसे  ठंढी   हो  अपनी  काया।
पहले सड़कों पर हम चलते थे।
दस  कदमों  पर पेड़ मिलते थे।
चलने  से  थक  जाते  थे   हम।
छाया  में बैठ  सुस्ताते  थे  हम।
पेड़  बने अब  मील के  पत्थर ।
छाया मिलेगी अब हमें  किधर।
हम   पेड़ों   को   काट   रहे  हैं।
दीमक   बनकर   चाट  रहे   हैं।
घर  में  भरे   हुए  हैं   फर्नीचर।
घट   रहे   हैं   पेड़   भूमि   पर।
हमें  नहीं पेड़- पौधों  पर माया।
कौन  देगा  फिर  हमको छाया।
एक-एक यदि हम  पेड़ लगाते ।
शायद  छाया  का  सुख  पाते।
               सुजाता प्रिय

20 comments:

  1. बेहतरीन...
    सादर..

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    1. जी धन्यबाद।आभारी हूँ
      सादर

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  2. बहुत ही सुन्दर।

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    1. धन्यबाद बहन! आपसे बात कर बहुत अच्छा लगा।साभार।

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  3. बहुत सुंदर रचना

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    1. धन्यबाद बहन।प्रसंशा एवं प्रेरणा के लिए ।सादर

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  4. बहुत सुंदर सार्थक सृजन ।

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  5. जी दीदीजी नमस्कार।मेरी रचना को "पाँच लिकों के आनंद में" साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद।सादर आभारी हूँ।

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  6. जी सादर धन्यबाद।

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  7. बेहतरीन रचना प्रिय सखी
    सादर

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  8. धन्यबाद सखी ।उत्साहबर्धन के लिए।साभार

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  9. बहुत सुंदर रचना

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    1. धन्यबाद बहन ।आभारी हूँ।

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  10. बेहतरीन सृजन..... सादर

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  11. वाह!!लाजवाब रचना!

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  12. बहुत खूब... पेड़ों के बिना छाया कहाँ...
    बेहतरीन रचना....
    वाह!!!

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  13. धन्यबाद बहन।

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