न ही रूप है न रंग है।
न आकार है न अंग है ।
पर हवा हमारे जीवन में-
रहता सदा सदा ही संग है।
पांच महाभूतो में एक है।
उपयोग इसके अनेक हैं।
हर जगह काम आता है-
कार्य इसके अनेक हैं।
हवा हमारा जीवन है।
इससे हमारा तन मन है
इसके बिन चूल्हे में भी-
जल न पाता इंधन है ।
आओ इसे बचाएं हम।
धरा पर वृक्ष लगाए हम।
सांस संवारन वायु को -
मिलके स्वच्छ बनाएँ हम।
इसके दम पर जीते हम।
हर पल हैं वायु पीते हम।
अगर हमें न मिलता वायु-
रह जाते सदा ही रीते हम।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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