मेरे मन-मंदिर में
ईश्वर का निवास है,
और प्रेम का बास है,
भरा हुआ उल्लास है,
मेरे मन - मंदिर में।
रहती सेवा-साधना,
और सच्ची आराधना,
मेल-मिलाप भी घना,
मेरे मन- मंदिर में।
प्रेम और सद्भाव है,
दुष्प्रेम का आभाव है,
न कोई दुराभाव है,
मेरे मन - मंदिर में।
सभी के लिए समता,
सभी जीवों से ममता,
प्यार नहीं है कमता,
मेरे मन- मंदिर में।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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