शिव पार्वती (विधाता छंद)
भवानी संग शिव-शंकर,चढे हैं वृषभ के ऊपर।
उतर कैलाश पर्वत से,मगन हो घूमते भू पर।
मिले जो भक्त राहों में,उसे वरदान देते हैं।
विनय कर जो बुलाते हैं,सभी की शुद्धि लेते हैं।
जटे में गंग की धारा,चमकता चांद है सिर पर।
विराजे कान में कुण्डल,अजब मुस्कान है मुख पर।
गले में नाग की माला,तिलक चंदन लगाए हैं
बढ़ी शोभा कमण्डल की,बदन में भस्म लगाए हैं।
लिए हैं हाथ में डमरू,बजाते डम डमा डम-डम।
थमा त्रिशूल है कर में, चमकता चम-चमा चम-चम।
फँसी नैया उबारेंगे,हमें बस आस है उनपर।
सदाशिव अब पधारेंगे,सदा विश्वास है उनपर।
यही आशीष दो सबको,सभी जन आज सुख पाएँ।
नहीं कोई बुराई हो,कभी कोई न दुख आए।
सुजाता प्रिय समृद्धि
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