प्रेम नगर का झूला रे।
काहे की डांडी ?काहे की डोरी?
काहे का लटका झूला रे ?
प्यार की डांडी। प्रेम की डोरी।
प्रीत का लटका झूला रे।
कौन झूले को कस कर बांध्यो?
किसका बंधन खुला रे ?
विनम्र झूले को कस कर बांध्यो,
उद्दंड का बंधन खुला रे।
कौन झूले पेंग बढ़ाकर ?
कौन मद में फूला रे ?
संस्कारी झूले पेंग बढ़ाकर,
अहंकारी मद में फूला रे।
कौन झूले चाक-चौबंद हो ?
कौन सुध-बुध भूला रे ?
स्वार्थी झूले चाक-चौबंद हो,
नि:स्वार्थी सुध-बुध भूला रे।
कौन झूले को यत्न से राख्यो ?
कौन पड़ायौ धूला रे ?
समझदार झूले को यत्न से राख्यो।
नासमझ पड़ायौ धूला रे।
छलिया मन में कपट रख झूले,
मन में राखे शूला रे।
कहे 'समृद्धि' निष्कपट हो झूलो,
हृदय न राखों हुला रे।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
इस जगत में चरित्र और व्यवहार के अनुसार झूलते हैं सभी.
ReplyDeleteसटीक रचना.
पधारिये - संस्कृति - विकृति
हार्दिक आभार भाई
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