मरणोपरांत
छोटी भाभी को उलाहने और फटकार लगाने वाली अम्मा उनके द्बारा बनाए गए सजावट के सामानों को मुहल्ले की औरतों को दिखा रही थी।उनकी कलाकारी को देख सभी ने दाँतों तले अंँगुली दवा ली। शोकेस में करीने से रखें पेंटिंग्स को देख सभी हतप्रभ रह गई। कहा -"कसीदाकारी के ऐसे नमूने नहीं देखे।"
रसोई में रखें अचार मुरब्बे को दिखाते हुए माँ ने कहा- "उसके जैसा स्वादिष्ट भोजन मेरे घर में कोई नहीं बना सकती।"
ईर्ष्या के भाव त्याग कर बड़ी भाभी ने कहा -"सचमुच उसे नमक-मसाले डालने का बड़ा अंदाज था।सभी चीजें संतुलित मात्रा में डालती थी। जितना सुंदर चेहरा था उससे भी ज्यादा सुंदर उसका दिल था।"
सदा द्वेषपूर्ण व्यवहार करने वाली अमीशा की नजरें माला पहनी छोटी भाभी की तस्वीर पर जा टिकी। उनके खूबसूरत चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान बिखरा था।जैसे कह रही हो -काश ! इतनी बड़ाई और सद्व्यवहार मुझे जीवन में मिले होते ?
सुजाता प्रिय समृद्धि
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" गुरुवार 28 सितंबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteसच है
ReplyDeleteजी सादर धन्यवाद 🙏🙏
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व्यंग्य, यह हमारे समाज का कटु सत्य है
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद भाई 🙏
ReplyDeleteयही विडंबना है | एक औरत दूसरी की प्रशंसा सहन नहीं कर पाती | हर औरत दूसरी की राह में कुटिल जाल फैलाने से नहीं चूकती | यही जीवन है | एक सार्थक लघुकथा सुजाता जी |
ReplyDeleteआभार सखी
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