क्यों रूप बदलते चन्दा मामा
आंँगन में एक खाट पड़ी थी।
उसके ऊपर इक टाट पड़ी थी।
रात को उसपर मैं सो रही थी।
मीठे -स्वप्नों में मैं खो रही थी।
चंदामामा आये हैं आंँगन मेरे।
मेरी ओर अपना मुखड़ा फेरे।
कर रहे हैं हंँस वे मुझसे बातें।
शिकायत मेरी क्यों ना आते।
उसी समय टूट गई मेरी नींद।
सुस्वप्न टूट जाने की मानिंद।
ढूंढ़ी चंदा को मैंआँंखें खोल।
इत-उत हथेलियों से टटोल।
अनायास ऊपर उठीं निगाहें।
रुक गई मेरी टटोलती बाहें।
आसमांँ में तारे विचर रहे थे।
चम-चम करते निखर रहे थे।
चंदामामा भी थे उनके साथ
हंँस-हंँस उनसे कर रहे बात।
चंँदामामा का देख आकार।
मेरे मन में यह उठा विचार।
कहांँ छुपाया इन्होंने आधा अंग?
किसी के प्रहार से हुए हैं भंग?
एक रात देखी मैं हँंसियाकार।
एक रात दिखते थे जैसे तार।
एक रात रूप था गोल-मटोल।
आज मैं इनकी खोलूंगी पोल।
मांँ से पूछा मैंने इसका राज।
चंँदामामा आधा क्यों है आज ?
मांँ बोली-निज धूरी पर चंदा घूमता।
सूर्य-प्रकाश पा है चाँद चमकता रद्द ।
प्रकाश उसपर जितनी दूर पड़ता।
उतना ही अंग उसका हमें दिखता ।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
सिर्फ डेढ़ दिन और फिर वहीं पहुँच सारी जिज्ञासाएं शांत करते हैं
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