यह कैसा इंसाफ (लघुकथा)
प्रतिमा देवी अपनी पड़ोसन से कह रहीं थीं - मुझे माँ-बाप ने अच्छे विद्यालय में नहीं पढ़ाया अच्छे घर ब्याह नहीं किया। सारे पैसे उन्होंने बेटों को पढ़ाने एवं नौकरी-धंधा में लगा दिया।तभी मैंने सोचा था कि अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलवाऊँगी,अच्छे घर ब्याहूंँगी।मेरा सपना पूरा हो गया।मेरी दोनों बेटियांँ पढ़-लिखकर अच्छी नौकरियांँ कर रही हैं ।अच्छे घराने में ब्याह कर दिया। मेरी बेटियाँ सुख से है।बस मेरी सारी इच्छाएंँ पूरी हो गईं। मेरा जीवन सफल हो गया।
उनकी बातें सुन बेटा हिमेश का मन कुढ़ उठा। मन-ही-मन सोचा बेटियों को तो तूने अच्छी शिक्षा दिलवाई,सारी इच्छाएं पूरी किये, मान-सम्मान दिया, अच्छे-अच्छे घर ब्याह किया लेकिन मुझे बेटे को ? मुझे यह कहकर सरकारी विद्यालय में पढ़ाया कि बेटियों की पढ़ाई व ब्याह करने हैं।उनका जीवन सुधारने का हर संभव प्रयास किया , लेकिन मेरे लिए कभी कुछ नहीं सोचा।सारे जमीन जायदाद,जएबर-गहने बेचकर उनका अच्छे घर ब्याह कर दिया। लेकिन मेरे रहने का ठौर नहीं। शिक्षा ऐसी दिलवाई जिससे आगे का कोई रास्ता नहीं है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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