ठंड का प्रकोप
ठंड का प्रकोप देखो बढ़ता जाए रे।
जालिम यह क्यों हमको है सताए रे।
शरीर पर गर्म कपड़े बोझ बढ़ाए रे।
जीवों का तन-मन कितना कपकपाए रे।
ठंडी है ऐसा छायी,काया है थरथराई।
बर्फीली शीत लहरी,हवा में है लहरायी।
बैठे हैं यहांँ हम अलाव जलाए रे।
जालिम यह क्यों हमको है सताए रे।
कैसी कड़कती सर्दी,जाएगी कब बेदर्दी।
सबका है हाल खस्ता,नाक में दम कर दी।
दिल का यह हाल किसको हम सुनाए रे
जालिम यह क्यों हमको है सताए रे।
ठंडी लगे रजाई,मौसम ने रंग दिखाई।
ठिठुरते हमारे तन-मन,चक्कर है यह चलायी।
चल रही है तेज कितनी ठंडी हवाएँ रे।
जालिम यह क्यों हमको है सताए रे।
कोहरा बड़ा है छाया,सूरज को भी छुपाया।
इंधन में भी नमी है,मोहरा हमें बनाया।
जाने ठंड क्यों इतना सितम है बारे रे।
जालिम यह क्यों हमको है सताए रे ।
सुजाता प्रिय समृद्धि
No comments:
Post a Comment