गरीब का बुढ़ापा
मुट्ठी भर दाने है खाना।
उसको मुझे है पकाना।
चुल्हे इसी से है जलाना।
उसके लिए ईंधन लाना।
पापी पेट का सवाल है।
अब जीना यहाँ मुहाल है।
ठंड से बुरा अब हाल है।
किसी को नहीं मलाल है।
लाठी बुढ़ापे का सहारा है।
ठंड में आग ही हमारा है।
इसके सिवा नहीं चारा है।
लाठी और आग सहारा है।
बुढ़ी हूँ किस्मत की मारी ।
लकड़ियाँ बिनना लाचारी।
हूँ बस दुःख की अधिकारी।
ढोती पीठ पर बोझा भारी।
पल सुबह का, या शाम का।
समय न मिलता विश्राम का।
नहीं लेनेकभी नाम राम का।
जपना मन में हरि-नाम का।
सुजाता प्रिय समृद्धि
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