वचन पालन
पिता ने बिटिया का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा -"बेटी ऐशु! मेरे बाद घर की पूरी जिम्मेदारी तुम्हारी है। मैंने यह घर सिर्फ तुम्हारे लिए बनवाया है।जीवन में कभी भी मेरा घर,अपनी कलम और पुस्तक का साथ मत छोड़ना।मेरे बाद ये तुम्हारा सहारा बनेगा।
वचन देते समय बारह वर्षीय बेटी यह पता नहीं था कि एक दिन बाद ही उसकी अनपढ़ मांँ और तीन छोटी बहनों की जिम्मेदारी उसके कोमल कंधे पर छोड़कर पिताजी सदा के लिए चले जाएँगे।बस एक ईश्वर,एक आराध्य और आधार के रूप में सदा उसके साथ रहेंगे।अब जीवन के छिनते आसमान रुपी पिता के साथ वैभव पूर्ण जीवन यापन करने वाली नन्हीं परी को जीवन आभाव भूख, गरीबी लाचारी में बीतने लगा।उसके कंधे पर चार लोगों की जिम्मेदारियां थी।वह कड़ी मेहनत करने लगी। पढ़ाई के पाठों को प्रत्येक पंक्ति और शब्द कंठस्थ करने लगी।इस प्रकार अपनी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पुरस्कृत होती गयी। पिता के घर में रह उनकी यादों में मन में उत्पन्न भावों और विचारों को कोई सुनने वाला था बस उसके कागज कलम।मन के उफानों से उत्पन्न शब्दों के चमकीले मोतियों को पंक्तियों के धागों में पिरोकर काव्य-मालिका गूंथती और पिता के आशीर्वाद स्वरूप पुरस्कार प्राप्त करती।कवि सम्मेलनों में प्रतिभागिता, ओर महान् कवियों के सानिध्य एवं आशीर्वाद ने काफी प्रेरित किया। विद्यालय में प्रधानाचार्या और बैंक मैनेजर के रूप में कार्य रूपी तप करते हुए जननी तथा सहोदराओं की शिक्षा -दीक्षा और पाणिग्रहण संस्कार के यज्ञ कर पिता को दिए गए वचन को पूरी सत्य एवं निष्ठा के साथ कर पूर्णाहुति दी।
सुजाता प्रिय समृद्धि
विद्यालय में प्रधानाचार्या और बैंक मैनेजर के रूप में कार्य रूपी तप करते हुए .......
ReplyDeleteये दोनों पदों पर रहना कैसे संभव हो सकता है ।
यूँ लघुकथा अच्छी है ।।