जय माँ शारदे
बाल श्रीकृष्ण के अलौकिक कार्य
नटखट श्रीकृष्ण बाल रुप से ही लीला रुपी बाल सुलभ कर्म दिखाने लगे थे।एक बार माता यशोदा ने मिट्टी खाते हुए उन्हें टोका-फिर मिट्टी खायी तूने ?उन्होंने ना में सिर हिलाया। माता ने परीक्षण हेतु कहा -मुँह खोलो। जब श्री कृष्ण ने अपना मुंँह खोला तो उनके मुँह में संपूर्ण ब्रहमांड देखकर माता यशोदा से चकित रह गई ।
जब श्री कृष्ण घुटने और पंजे के बल चलने लगे तो माता यशोदा इस डर से कि वह बाहर ना चला जाए उन्हें डोरी के सहारे ओखली में बाँंध दिया। लेकिन श्री कृष्ण ओखली के साथ खिसकते हुए जंगल जा पहुंचे जहांँ नारद द्वारा शापित दो ऋषि वृक्ष रूप में पास-पास खड़े थे। कृष्ण उन वृक्षों के बीच से घुसकर चले गए तो ओखली दोनों वृक्ष के तने में अटक गई। बालक श्रीकृष्ण ने ओखली इतनी जोर से खींची की दोनों वृक्ष ही उखाड़ गए और दोनों ऋषि शाप मुक्त हो मानव रूप को प्राप्त किए।
एक बार बालक श्रीकृष्ण माता यशोदा से हट कर बैठे -मांँ ! मुझे चंदा दे दो मैं उससे गेंद खेलूंगा। उनके हठ से परेशान यसोदा माँ ने उन्हें बहलाने हेतु थाली में पानी रख उसमें चंद्रमा की परछाई दिखाई और कहा ले चंदा।श्री कृष्ण ने परछाई रूपी चंद्रमा को उठाकर अपने सिर पर धारण कर लिया ।जिसे देख माता यशोदा घबरा गई।
बालक श्रीकृष्ण पालने में सो रहे थे।तभी कंस द्वारा भेजी गई उसकी मुंँह-बोली बहन पूतना राक्षसी ने उन्हें मारने हेतु यशोदा मां का रूप धारण कर उन्हें उठाकर अपना विश लगा दूध पिलाना शुरू किया । भगवान कृष्ण ने उसके दूध के साथ उसके शरीर के रक्त भी चुस-चुसकर पी गये। इस प्रकार पूतना राक्षसी को अपने प्राण गवांने पड़े।
श्री कृष्ण बाल-सखा के साथ खेल रहे थे तभी उनका गेंद यमुना नदी में गिर गया।सभी बालक डर गए कि यमुना नदी में कालिया नामक नाग रहता है जिससे आज तक कोई नहीं बच सका।कृष्ण ने अपना गेंद लेने हेतु यमुना नदी में कूद पड़े।नागराज कालिया से भयंकर युद्ध हुआ। उन्होंने उसे नथ कर उसके फण पर बड़ा मनमोहक नृत्य किया।अंत में नागराज ने उनसे शमा याचना की और उनका गेंद वापस किया। सभी बच्चे उनके इस दुस्साहस से खुश हो गए।इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने बाल्य काल से ही अच्छे और अनोखे कार्य किया।सभी मिल बोलिए-बालक श्री कृष्ण की जय।🙏🙏
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