जब -जब मेरे होंठों पर,
देती दिखाई मेरी हंसी।
जब-जब मेरी मुखड़े पर,
है छाई मेरी हंसी।
कितने लोगों ने होश को खोए, कितने हो गये घायल।
कितने के दिल में तीर समान,
समाई मेरी हंसी।
कुछ लोग भी हैं ऐसे,
जिन्हें हंसना नहीं गवारा।
उन लोगों के मन में भी,
कुछ-न-कुछ भाई मेरी हंसी।
जब महफ़िल में छाई थी,
तमाम उदासियां,
तो खुशी का जलवा बन,
लहरायी मेरी हंसी।
भरी सभा में आलम था,
मायुसियों की क्या जाने।
तब बादल की झोकेे -सी ,
लहराई मेरी हंसी।
सोई थी रात तिमिर का,
चादर फैलाकर ओढ़।
प्रभात किरण बनकर नभ में
तब छाई मेरी हंसी।
मेरी हंसी का जलवा क्या,
देखें कभी हैं आप,
हंसने वालों को भी है
मिर्ची लगाई मेरी हंसी।
मार ठहाके मेरी हंसी पर,
हंसते जाते हैं आप।
चलो खुशी की बात है,
कुछ तो रंग लाई मेरी हंसी।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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