कल-कल छल-छल बहती जाएं,मां गंगा की धारा।
प्लावित रहता निर्मल जल से,इसका सदा किनारा।
मां गंगा के पावन जल में,जब भी स्नान करें हम।
रोग-दोष सब दूर भगाएं,जीवन कल्याण करें हम।
पवित्र हमारा तन-मन होति, मिट जाता कष्ट हमारा।
प्लावित रहता.................
इसके जल में शीश नवाएं,तब अपना पांव बढ़ाएं।
इसके चंचल बहते जल में, हम डुबकी मार नहाएं।
हाथ में जल ले अर्ध चढ़ाएं,खुश हो जाए देव हमारा।
प्लावित रहता ...................
इसके जल में जड़ी-बूटियों का सत्व मिला है होता।
तभी हर नदियों के जल से, इसका जल पावन होता।
इसके जल में कीटाणुओं का, होता है नहीं गुजरा।
प्लावित रहता.................
अमृत सम मां गंगा है,हमको अपना नीर पिलाती।
इसीलिए यह जाह्नवी हमारी, है प्यारी मां कहाती।
हर - हर गंगे बोल सदा हम, लगाते हैं इसका नारा।
प्लावित रहता...................
इसके तट पर कितने ही ,प्राचीन नगर बसे हुए हैं।
हर नगर की गौरव-गाथा, पुरातन इतिहास रचे हैं।
ऋषि-मुनियों का शरण-स्थल है गुरुओं का गुरुद्वारा।
प्लावित रहता ......................
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
No comments:
Post a Comment