उड़हुल फूलों का हार,
लेकर आई तेरे द्वार,
जगदम्बा पहनाऊंगी,
तेरे गले डार।
कर लो विनती स्वीकार,
सबको दे दो अपना प्यार।
जगदम्बा मनाऊंगी,तुझको बारम्बार।
कर जोड़ खड़ी हूं मैं मां तेरे द्वारे।
हम सबका जीवन तुम ही संवारे।
पकड़ मां मेरी भी पतवार,
कर दो नैया उस पार,
जगदम्बा मनाऊंगी तुझको बारम्बार।
उड़हुल फूलों का हार...........
करके आराधन तुझको पुकारें।
दुःख-दारिद्रा से तुम ही उबारे।
सुख की गिरती है फुहार,
मुख से निकले जय-जयकार,
जगदम्बा मनाऊंगी, तुझको बारम्बार।
उड़हुल फूलों का हार.........
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
अप्रतिम मातृ वंदन। चैत्र नवरात्र की शुभकामना!!!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद भाई!आपको भी नववर्ष की हार्दिक बधाई
ReplyDeleteमां दुर्गा की सुंदर भावपूर्ण आराधना,नववर्ष तथा नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई.... जिज्ञासा सिंह, समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी पधारें, सस्नेह सादर ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सखी जिज्ञासा हो। मां जगदम्बा की कृष्ण अप्पर बनी रहे।
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति .... जय माता दी .
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
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