चिंतन कर ले कभी-कभी पर,चिंता कभी न करना।
चिंतन कर तुम सुन ऐ प्राणि, अंधकार मन के हरना।
चिंता करने से चित हो जाता पानी-पानी भाई।
चिंतन करने से पा सकते होे जीवन की गहराई।
चिंता करने से मानव जन सफल कहां होते हैं।
चिंता करके केवल अपना सर्वस्व सदा खोते हैं।
चिंतन,मंथन और मेहनत से, तुम कभी मत डरना।
चिंतन कर लें कभी-कभी पर चिंता कभी न करना
चिंता मानव के तन को है दीमक बनकर खाता।
चिंता करनेवाला जीवन में कंकाल बन रह जाता।
चिंता मारता नहीं है लेकिन,बेमौत सुला देता है।
चिंता चिता बन मानवजन का सत्व जला देता है।
चिंता करके तुम भी देखो, बेमौत कभी मत मरना।
चिंतन कर लें कभी-कभी पर, चिंता कभी न करना।
चिंता करने से नहीं हम हैं पा सकते मंजिल को।
चिंतन की पतवार पकड़ कर,छू सकते साहिल को।
चिंता से चतुराई घटती है, पर चिंतन से बढ़ती है।
चिंतन करने वाले को अपनी मंजिल भी मिलती है।
चिंतन करके तुम भी देखो, राह नयी नित गढ़ना।
चिंतन कर लें कभी-कभी,पर चिंता कभी न करना।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद भाई !
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