आओ चुल्हा साझा कर लें।
अपना-अपना भुंजा भुंज लें।
नौ अछिया यह चुल्हा हमारा।
नौ पतिला को चढ़ा करारा।
लकड़ी-गोइठा सब लेकर आए।
टोकरी भर भरकर अनाज लाए।
भूनने बैठी दीदी, बुआ -चाची।
दादी गीत गा कहानियाँ बाची।
चना,जौ और वह अरहर भूनी।
गेहूँ, मकई मूँग और मटर भूनी।
कूट - पीसकर हम सत्तु बनाएँ।
मकई चने की सोंधी रोटी खाएँ।
सोंधी- दाल बनाएँ अरहर की।
दलिया मकई औ मूँग-मटर की।
हिल-मिल भूने,मिलजुल खाएँ।
एकता का हम संदेश सुनाएँ।
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित ( मौलिक)
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 02-10-2020) को "पंथ होने दो अपरिचित" (चर्चा अंक-3842) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
सादर धन्यबाद एवं आभार दी! मेरी प्रविष्टि को चर्चा अंक में स्थान देने के लिए।
ReplyDeleteवाह,क्या बात है!
ReplyDeleteसादर धन्यबाद।
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद एवं प्रणाम
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी
Deleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन 👌
ReplyDeleteसादर नमन सखी!
Delete