Wednesday, September 30, 2020

साझा चुल्हा

आओ चुल्हा  साझा कर लें।
अपना-अपना भुंजा भुंज लें।

नौ अछिया यह चुल्हा हमारा।
नौ पतिला को  चढ़ा  करारा।

लकड़ी-गोइठा सब लेकर आए।
टोकरी भर भरकर अनाज लाए।

भूनने बैठी दीदी, बुआ -चाची।
दादी गीत गा कहानियाँ बाची।

चना,जौ और वह अरहर भूनी।
गेहूँ, मकई मूँग और मटर भूनी।

कूट - पीसकर हम सत्तु बनाएँ।
मकई चने की सोंधी रोटी खाएँ।

सोंधी- दाल बनाएँ अरहर की।
दलिया मकई औ मूँग-मटर की।

हिल-मिल भूने,मिलजुल खाएँ।
एकता का  हम संदेश सुनाएँ।

     सुजाता प्रिय'समृद्धि'
      स्वरचित ( मौलिक)

11 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 02-10-2020) को "पंथ होने दो अपरिचित" (चर्चा अंक-3842) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

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  2. सादर धन्यबाद एवं आभार दी! मेरी प्रविष्टि को चर्चा अंक में स्थान देने के लिए।

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  3. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यबाद एवं प्रणाम

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  4. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी

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  5. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी

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  6. बहुत ही सुंदर सृजन 👌

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