पढ़ाई करने के बाद राखी चहलकदमी करती हुई बाहर आई ।उसने देखा-सब्जी वाली बार-बार दादी से साग और बैंगन लेने के लिए मनुहार कर रही है।और दादी बार-बार उसे मना करते हुए बोल रही हैं- सावन में साग बैंगन नहीं खाना चाहिए।दादी 'द्वारा ली गई लौकी-झिंगी देखकर वह सोंच रही थी यह दादी की कौन-सी मान्यता है कि सावन में साग बैंगन नहीं खाना चाहिए।कल दही वाले को भी कह रही थी सावन में दही नहीं खाना है।पिताजी को मछली लाने से मना करते हुए बोलीं सावन में मांसाहार नहीं करना चहिए। सावन माह में इन वस्तुओं के सेवन पर पावंदी क्यों।आजकल दादी पूजा - पाठ भी विशेष रूप से करने लगीं हैं।भांग -धतुरे, वेलपत्र- आंक दूध -घृत, जाने क्या-क्या भोले बाबा पर चढ़ाती हैं।हर सोमवार को उपवास रखना।सुबह शाम भजन-आरती।फिर रक्षा बंधन का त्योहार की तैयारी भी जोरों से चल रही है।राखी ,डाक आवागमन मिठाई उपहार इत्यादि में नाहक कितने पैसे खर्च हो जाते हैं लोगों के। उफ़ बेकार की फिजुलखर्ची।
उसे इस प्रकार उधेड़-बुन में पड़े देख आखिर दादाजी ने पूछ ही लिया- मेरी राखी बिटिया कुछ परेशान लग रही है।राखी ने उपरोक्त सभी बातों को दादाजी के समक्ष रखते हुए बोली- इन्हीं कारणों से तो लोग हिन्दु धर्म को ढकोसला कहते हैं।
दादाजी उसे अपने पास बैठाकर प्यार से समझाते हुए बोले-सावन मास बड़ा ही पावन मास है।इस महीने में व्रत- त्योहार का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं अपितु वैज्ञानिक महत्व भी है।शिवलिंग पर दूध और जल के अभिषेक करने से वातावरण को शीतलता प्रदान होती है।भांग-धतुरे, आक - विल्वपत्र इत्यादि कीटाणु रोधक होते हैं।इन्हें चढा़ने से आस- पास पनपने वाले कीटाणुओं का नाश होता है।पूजा करने से लोगों का अंतःकरण भी शुद्ध होता है।
इस माह में साग- बैंगन और दही में कीटाणु जल्द पनपते हैं।जिन जीवों का मांस हम खाते हैं ,वे बरसात के कीटाणु जनित घास-पात खाकर पहले से ही रोग-ग्रस्त होते हैं उनका मांस खाने से हमें भी संक्रमण का खतरा रहता है इसलिए इस महीने में लोगों को इन खाद्य पदार्थों का निषेध करना चाहिए।
इस माह के रक्षा बंधन पर्व की महिमा भी अलग है।यह पर्व भाई-बहन के पवित्र प्रेम और रिस्ते को द्योतक है। रक्षा बंधन के दिन ही तुम्हारा जन्म हुआ इसलिए हमने तुम्हारा नाम राखी रखा ।इस दिन भाई -बहन दूर-दूर से भी एक-दूसरे से मिलने और राखी बंधबाने आते हैं।यदि नहीं आ पाती हैं तो बहने डाक 'द्वारा भी राखी भेजती हैं।कितने प्यारे होते हैं वे पल ।पैसे खर्च होने की किसे परवाह ।मिठाई और उपहार तो मन का प्यार है।रिस्ते निभाने का महत्व सबसे ज्यादा होता है।
राखी दादाजी की बाते सुनकर बहुत खुश हुई। दादाजी भी सावन के महीने के महत्व को समझा कर काफी खुश हुए।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
बहुत सुंदर सीख देती कथा,सखी हमारे देश में हर नियम-कानून को वैज्ञानिकता के आधार पर बनाया गया परन्तु हमारे पूर्वजो ने सभी बातों का धार्मिक कारण बताकर धर्म से जोड़ दिया और हम धर्म को मैंने से इंकार करने लगे। यदि शुरू से ही हमें सही शिक्षा दी गई होती आज हम पथभ्रष्ट नहीं हुई होते,बहुत ही बढ़िया सादर नमन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी
Deleteसनातन धर्म पूर्णत वैज्ञानिक धर्म हे
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कहानी
जी सादर धन्यबाद एवं आभार
ReplyDeleteसादर धन्यबाद सखी कामिनी जी।मेरी रचना को चर्चा अंक में साझा करने के लिए।
ReplyDeleteआ सुजाता जी, सुन्दर सीख देती लघुकथा। साधुवाद !
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग के इस लिंक पर जाकर मेरी रचनाएं पढ़ें और अपने विचारों से अवगत कराएं !
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ब्रजेन्द्र नाथ
बहुत-बहुत धन्यबाद।
Deleteबहुत सुंदर लघुकथा सखी
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी
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