Friday, December 20, 2024

घड़ी

घड़ी

टंगी हुई दीवार पर
        टिक-टिक-टिक गाना गाती। 
अपने दोनों हाथ घुमाकर, 
         हमें समय का भान कराती। 
कभी न रुकती,कभी न थकती। 
       गतिशील होना हमें सिखाती। 
निरंतर आगे बढ़ती जाती, 
         पथ पर बढना, हमें बताती।
भोर हुआ उठ पढो सभी, 
       अलार्म बजाकर हमें जगाती। 
समय से करना,काम सीखाती, 
      समय का हमें पावंदी बनाती। 
समय से मेरे काम कराती, 
          इसीलिए हम सबको भाती। 
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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