Monday, December 30, 2024

गुरु जी तुम्हारे चरणों में

गुरु जी तुम्हारे चरणों में 

हम शीश नवाते हैं निश दिन गुरु जी तुम्हारे चरणों में। 
विश्वास है मन में मिलेगा सदा, आशीष तुम्हारे चरणों में।। 
हम शीश झुकाते हैं............... 
यह देश हमारा धन्य हुआ। 
जिसमें तेरा है जन्म हुआ। 
हमें मिलती रहे तेरी दिव्य प्रभा, 
गुरु जी तुम्हारे चरणों में। 
हम शीश झुकाते हैं................ 
विश्व में भारत की शान बनी। 
तुझसे संघ की पहचान बनी। 
हम सब भी सदा बुद्धिमान बने। 
गुरुजी जी तुम्हारे चरणों में। 
हम शीश झुकाते हैं................ 
उन हिन्दुओं को संगठित किये। 
थे धर्म से जो विचलित हुए। 
हम आएं हैं प्रेरित हुए। 
गुरु जी तुम्हारे चरणों में। 
हम शीश झुकाते हैं............... 

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हम बच्चे हैं

हम बच्चे हैं

आप बडे़ हम बच्चे हैं। 
दाँत हमारे कच्चे हैं। 
मन में कोई खोट नहीं, 
हमसब कितने अच्छे हैं। 

भला- बुरा का ज्ञान सीखते, 
मन से भेद मिटाते हैं। 
ऊँच-नीच और जात-पात को, 
कभी न मन में लाते हैं। 
सबको माने एक समान, 
हम सब दिल के सच्चे हैं। 

हाथ जोड़कर, शीश नवाकर, 
नमन आपको करते हैं। 
आप हमें आशीष दीजिए, 
हम-सब आगे बढ़ते हैं। 
कल के कर्णधार बनें हम, 
अभी अक्ल के कच्चे हैं। 

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, December 29, 2024

बिन पानी सब सून

बिन पानी सब सून

जल संकट आ गया सखी री! घट रहा धरा पर पानी। 
जी भर इसे बर्बाद किये हम, करते आये मनमानी। 
बाल्टी भर पानी से रूमाल धोते, पांच बाल्टी से चादर। 
नल खोल जल खूब बहाये, इसका किया निरादर। 
अलग- अलग बर्तन में खाते, बहुत हाथ धोते थे। 
पानी आया है देख मगन हो, नल चला सोते थे। 
आज देख कुएं सुख रहें हैं, घटे जलाशय के स्तर। 
हैण्डपम्प भी जल विहिन हैं, तालाबों की हालत बदतर। 
नदियाँ बन गयीं सकते नाले, झील बने चारागाह। 
झरनों ने अपने दम तोड़, हाहाकार मचा है राह। 
नहरों का नाम- निशान मिटा है, मिट गया डोभा- पोखर। 
बैल बकरियाँ प्यासे घूमते, दिखता नहीं है आहर। 
जल हीन धरा सिसक रही है, धूल- धुसरित है गंगा। 
चित्कार कर रही मही, जल के कारण होता दंगा। 
मन में चिंतन कर देख सखी री! बिन पानी सब सुन। 
पानी बिन न अन्न उपजेंगे, खिलेंगे नहीं प्रसून। 
पानी का बचत करना ही इस समस्या का हल है। 
जल संचय हम करते जाए, यदि जीना हमें कल है। 
आओ यह संकल्प करें,बचत करना है पानी का। 
बस थोड़ा कंजूसी कर लो,जरुरत नहीं दानी का। 
हम न काटेंगे पेड़ों को, खूब सिरे पेड़ लगाएं। 
जल का स्रोत यही है,बहनों!समझें और समझाएँ। 
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, December 27, 2024

छोटा भाई

छोटा भाई
मैं तो राजा राम बनूंंगा, 
            लक्ष्मण होगा छोटा भाई। 
सुख और दुख में साथ-साथ, 
          होंगे भरत शत्रुघ्न से भाई। 
विद्यालय की छोटी कक्षा में, 
              जितने भैया करें पढ़ाई। 
उन सभी से प्यार करूँगा, 
              क्योंकि वे हैं छोटे भाई। 
खेल के मैदान में भी, 
           नहीं करूँगा कभी लड़ाई। 
हम पर भारत गर्व करेगा, 
            जग में होगी खूब बढ़ाई। 
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, December 25, 2024

कोयल काली

कोयल काली

भूरी-काली पंखों वाली। 
मधुवन की कोयल मतवाली। 
कू-कू करती फिरती आली। 
बोली इसकी बड़ी निराली। 
मन की वेदना हरने वाली। 
फुदक-फुदक कर डाली -डाली। 
फूलों जैसी खुश दिल वाली। 
लगती कितनी भोली - भाली। 
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

मैं

मैं            मैं 
             तुम्हें 
           कभी भी 
         बुलंदियों पर 
      चढ़ने  से रोक तो
         नहीं पाता हूंँ
          किन्तु  मुझे 
            सदा यह 
            भय लगा 
             रहता है 
             कि कहीं 
           ऊँची उड़ान 
             भरने हेतु 
            तुम्हारे पर न
        निकला जाए और 
    तुम मुझे छोड़कर मुझसे 
दूर और बहुत दूर न उड़ जाओ
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

नन्हें वीर हम

नन्हें वीर हम

हम भारत के बाल वीर हैं भारत माँ की शान हैं। 
भारत के आखों का तारा,भारत की संतान हैं। 
नन्हें वीर हम! भोले वीर हम! 

भारत अपनी जन्म भूमि है, माँ का मान बढा़एंँगे। 
भारत अपनी पुण्य भूमि है इसका पूण्य बढ़ाएँगे। 
इसकी मिट्टी के कण-कण में हम सोना उपजाएँगे। 
मेहनत और ताकत के बल पर, इसका अलख जगाएँगे। 
हम भारत की नूतन आशा, भारत की पहचान हैं। 
भारत के आँखों का .....................
नन्हें वीर हम! भोले वीर हम! 
भेदभाव का भरम मिटाकर,सत् का ज्योत जलाएंगे। 
धरती पर सबके सपनों का सुंदर नगर बसाएँगे। 
सबको अपने गले लगाकर, जीवन धन्य बनाएंगे। 
एक प्रेम का नाता अपने जीवन में अपनाएँगे। 
मिल-जुल कर हम रहें निरंतर,भारत के अभिमान हैं।
भारत के आँखों का तारा............... 
नन्हें वीर हम!भोले वीर हम। 

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, December 23, 2024

बोलो क्या कर पाये हो प्यारे

बोलो क्या कर पाये प्यारे 


इतने बड़े महल को पाकर,
बोलो! क्या कर पाये प्यारे।
सरल स्वच्छता त्याग दिये व,
गंदगी का अंबार लगाये प्यारे।

खोल न पाये मन की खिड़की,
दूर किया न अँधेरा।
सूरज की लाली न देखा,
देख न पाये सबेरा।
सदा अँधेरे में तुम रहकर,
मन में अंधकार फैलाये प्यारे।

निकला न कमरे से बाहर,
देखा नहीं उजाला।
काल कोठरी में तू रहकर,
बनाये अपना दिल काला।
दूर रहे रीति-नीति-प्रीती से,
संस्कार नहीं तुम पाये प्यारे।

घूमा नहीं खुले आंगन में,
ताजी हवा न पायी।
घुंटी हवा में सांस लिए तुम,
खुली 
घुट-घुट कर रहना तुम सीखे,
मन में घुटन समाये प्यारे।

सफलताओं की अनगिनत सीढियांँ,
नहीं कभी चढ़ पाये।
धीरे धीरे उन्नति नहीं कर,
ऊँची छलांग लगाये।
जा चढ़े ऊँचे कोठे पर,
उच्चता का ज्ञान न पाये प्यारे।

शीश उठाकर कभी न देखा,
ऊपर बैठा नीलाकाश।
घर की छत को ही तुमने,
माना अपना गगन उजास।
सूरज-चाँद की चमक न देखा,
देख न पाए तारे प्यारे।

निकला नहीं तुम घर से बाहर,
देखी नहीं बस्ती पूरी।
नगर-जनपदों की पहचान भी, तुम्हारी रही अधूरी।
सीमित क्षेत्र में ही रहकर,
संकुचित दिल बनाए प्यारे।
       
   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

विश्वासघात

विश्वासघात
सुंदरवन में जामुन पेड़ पर रहता था एक बंदर।
नीचे एक नदी थी जिसमें,राहत था एक मगर।
दोनों गहरे मित्र थे,घुलमिल कर बातें करते थे।
दोनों मिल जामुन खाते,नदी का पानी पीते थे।
एक दिन बहला बंदर को,पीठ पर मगर बैठाया।
कहा मगरनी ने आज है,दावत पर तुझे बुलाया।
पहुंचे जब वे बीच नदी,मगर ने बंदर को बताया।
मैं तो दोस्ती का वास्ता दे,छल से तुझे ले आया।
कोई दावत नहीं भाई! न मगरनी ने तुझे बुलाया।
तेरा कलेजा मीठा होगा,तूने जामुन बहुत खाया।
इसीलिए तुझे मार कर मैं,कलेजा तेरा खाऊंगा।
बहुत दिनों पर मन की,हसरत आज मिटाऊंगा।
कहा मगर से झट बंदर ने,काबू रखकर भय पर।
मैंने तो कलेजे को सुखने,दिया है पेड़ के ऊपर।
जल्दी से मुझको पेड़ तक,वापस तुम पहुंचा दो।
उठा पेड़ से अपना कलेजा,झट मैं तुम्हें थमा दूं।
पेड़ तक उसको ले आया,मगर ने बातों में आकर।
झट से पेड़ पर चढ़ बैठा,बंदर ने छलांग लगाकर।
ऊंँची डाली पर चढ़कर बोला-सुन रे कपटी मित्र।
कलेजा पेड़ पर सुखता ,यह बात नहीं है विचित्र।
जो जन अपने ही मित्रों से, विश्वासघात करते हैं।
कोई उसका मित्र न होता,सभी जन दूर रहते हैं।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

आया बंदर

आया बंदर 

कूद- कूदकर आया बंदर। 
    मेरी मधु बगिया के अंदर।। 
        आमों की डाली पर झूला। 
            अपनी करनी पर खूद फूला।। 

चुटकियों में फूल मसलकर। 
    नन्हें- नन्हें पौध कुचलकर।। 
        सब तहस-नहस कर डाला। 
            पके फलों को तोड़ उछाला।।

बीच चबूतरे पर चढ़ बैठा। 
    थके देह को थोड़ा ऐठा।।
         चोरी- चोरी चुपके- चुपके। 
             धीरे -से मैं पहूँची छुप के।।

लम्बी पूंछ उसकी झट पकड़ी। 
    हथेलियों में कसकर जकड़ी।। 
         बंदर बोला खीं- खीं करके। 
             पूछ छोड़ मैं भागी डर के।।

उछल कर बंदर आगे आया। 
    आँख दिखाकर मुझे डराया।।
         चिल्लाई मैं माँ-माँ कहकर। 
            बंदर भागा तुरंत उछल कर।।

                      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, December 20, 2024

घड़ी

घड़ी

टंगी हुई दीवार पर
        टिक-टिक-टिक गाना गाती। 
अपने दोनों हाथ घुमाकर, 
         हमें समय का भान कराती। 
कभी न रुकती,कभी न थकती। 
       गतिशील होना हमें सिखाती। 
निरंतर आगे बढ़ती जाती, 
         पथ पर बढना, हमें बताती।
भोर हुआ उठ पढो सभी, 
       अलार्म बजाकर हमें जगाती। 
समय से करना,काम सीखाती, 
      समय का हमें पावंदी बनाती। 
समय से मेरे काम कराती, 
          इसीलिए हम सबको भाती। 
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हम देश को बनाएँगे

हम देश को बनाएंँगे 

हम देश को बनाएंँगे,गुलशन से भी प्यारा। 
बन जाए हिन्द मेरा,संसार में न्यारा। ।
बन जाए हिन्द मेरा............ 
इसकी गली-गली में, बसे प्यार के ही घर हों। 
बसी प्यार की ही बस्ती,बसे प्यार के नगर हों। 
पगडंडी प्यार की हो, और प्यार के डगर हों। 
मंदिर भी प्यार की हो,पूजा जिधर- जिधर हो। 
स्वर प्यार के ही गूंजे, संकल्प हमारा।
बन जाए हिंद................ 
इसके वन- उपवन में घने वृक्ष प्यार के हों। 
पर्वतों में इसकी चोटियाँ, प्यार की हों। 
फूलवारियों खिलती कलियाँ भी प्यार की हों। 
पेड़ों की डालियों में, लदे फल भी प्यार के हों। 
नदियों के दोनों कुल में, बहे प्रेम की धारा।
बन जाए हिन्द मेरा................. 
हम रोशनी करेंगे,प्यार का दिया जलाकर। 
दूर होगें तम यहाँ से,नफरतों को मिटाकर। 
जब राह न मिले तो,नव पथ हम गढेंगे। 
हम साथ-साथ चलकर मंजिल तरफ बढेंगे। 
अपने सभी जनों को देकर के हम सहारा।
बन जाए हिन्द मेरा........... 
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, December 19, 2024

लालच बुरी बलाई

लालच बुरी बलाई

चार मित्र एक बार शाम को, 
टहल रहे थे पथ पर। 
वहाँ उन्होंने जाते देखा, 
एक सेठ को रथ पर। 

रथ से पथ पर एक पोटली, 
गिर पड़ी वहाँ फिसलकर। 
रथ बढ गया आगे तब, 
मित्रों ने झट उछल कर। 

उठा लिया उस पोटली को, 
फिर देखा उसको खोल। 
उस पोटली में थे बंधे, 
रतन बड़े अनमोल। 

देख रतन को उनके मन में, 
लालच ने आ घेरा।
बड़े प्यार से उन मित्रों ने, 
हाथ रतन पर फेरा। 

झट से बेच दिए रत्नों को, 
जौहरी के घर जाकर। 
बाट लिए पैसे आपस में, 
उन चारो ने बराबर। 

इतने में आ घेरा उन्हें, 
सिपाहियों के दल ने। 
कह चोर गिरफ्तार किया, 
लगे हाथ वे मलने। 

यदि पोटली रत्न भरी वह, 
सेठ को वापस देते। 
अपनी सज्जनता पर कुछ,
इनाम भी पा लेते। 

पर लालच में आकर समाज में, 
चोर बने वे भाई। 
इसीलिए तो कहते हैं कि,
लालच बुरी बलाई। 
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

रेल

रेल 
छुक-छुक करती रेल चली। 
करती कितने खेल चली।।
इंजन दौड़े आगे-आगे।
उसके पीछे डब्बे भागे।।
 रेल हमारी बड़ी सवारी।
 ढोती माल भारी भारी।।
छुक छुक भाई छुक छुक। 
प्लेट फॉर्म पर जाती रुक।।
यात्री चढ़ने और उतरते।
फिर अपने गंतव्य पर बढ़ते।।
लोहे की पटरी पर चलती।
कभी न रुकती कभी न थकती।।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, December 18, 2024

अधूरा ज्ञान

अधूरा ज्ञान 

कहां कबूतर-सुन भाई तीतर!
              घोंसला बनाने सीखाओ।
बोला तीतर-तिनके लेकर,
                 गोल-गोल उसे घुमाओ।
थोड़ा समझकर,कहता कबूतर,
               हांँ-हाँ मैं सब समझ गया।
अधूरा पाकर, ज्ञान कबूतर,
           कभी घोंसला नहीं बना पाया।
जो जन ज्ञान अर्जित करने में,
                    चित को नहीं लगाते हैं।
वे कभी अपने जीवन में,
                     सफल नहीं हो पाते हैं।
         
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

महादेव के बारह नाम

ऊँ महादेव के बारह नाम -

                           सोमनाथ 
                        मल्लिकार्जुन 
                  महाकालेश्वर ओंकारेश्वर
             वैद्यनाथ                 भीमाशंकर 
              रामेश्वर                  नागेश्वर
            विश्वनाथ                  त्र्यम्बकेश्वर 
          केदारनाथ                  घृष्णेश्वर

तू डाल-डाल मैं पात-पात

तू डाल-डाल मैं पात-पात

नन्ही गिलहरी चुन्नु के से। 🏡
रोटी का एक टुकड़ा लायी। 🍕
बैठ डाल पर नन्हें दाँतों से, 
कुतर-कुतर कर थोड़ा खायी। 

बंदर🐒 मामा कहीं से आकर, 
छीन लिया उससे वह रोटी। 🍞
रोटी मुझको दे दो मामा, 
गिलहरी बोली रोती-रोती। 

ले जा आकर अपनी रोटी🍞
बड़े प्यार से बोला बंदर🐵
उछल-उछल कर भाग रहा था, 
इस डाली से उस डाली पर। 

नहीं पकड़ जब सकी गिलहरी, 
थक-हार चुप बैठ गयी। 
🐒बंदर से बदला लेने की, 
होंगी एक तरकीब नयी। 

एक दिन बंदर मामा भी, 
मिठाई🍮 लाकर खा रहा था। 
मजेदार😋 मिठाई हाथ✋ लगी है। 
सोंच मन में इठला रहा था। 

घात लगाए बैठी गिलहरी ने, 
झट से झपट लिया मिठाई🍬
दोनों आंखों को मटकाकर, 
जीभ दिखाकर उसे चिढ़ाई।

दे दे मुझे मिठाई तू मेरी 🙉
बंदर ने उसको पुचकारा। 
ले सकते तो ले जा आकर, 
गिलहरी ने उसको ललकारा। 

डाल- डाल पर दौड़-दौड़ कर, 
पकड़ने उसको जाता बंदर🐒
पहुँच न पाता, बैठे पाता, 
गिलहरी को चेतन पत्तों पर। 

गिलहरी रानी बोली हंसकर,
सुनो-सुनो👂 ऐ नटखट बंदर🐵
डाल-डाल तू दौड़ लगाते, 
और मैं दौडू़  पत्ते- पत्ते पर। 

सुजाता प्रिय समृद्धि

Monday, December 16, 2024

दिन बीता जाए रे


दिन बीता जाए रे

दिन बीता जाए रे ! दिन बीता जाए। 
तम घिरता जाए रे! तम घिरता जाए। 

दिन भर चलकर सूरज लौटा, फैल रहा है अंधेरा। 
खग कलरव कर उड़ते जाते,खोज रहे हैं बसेरा। 
तुम भी अपने घर को पहुंचो, मधु रजनी का बेरा। 
मन का दीप जलाओ, सुख से रैन बिताओ। 
जीवन को रंगी बनाओ, जो मन भाये रे !
दिन बीता जाए !
वस्ती-वस्ती घूम- घूम कर, देख ले दुनिया सारी। 
दुनिया की है चाल निराली, कुछ तीखी कुछ प्यारी। 
दोनों को जब ग्रहण करो तो, हो जाएगी न्यारी। 
दिल में सफाई लाओ, जीवन में सच्चाई लाओ। 
मन में अच्छाई लाओ,इससे जग जीता जाए रे। 
जग जीता जाए। 
दिन बीता जाए रे 

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, December 14, 2024

रंग-बिरंगे फूल हैं हम

रंग-बिरंगे फूल हैं हम

भारत मांँ की फुलवारी के, रंग-बिरंगे फूल हैं हम। 
वैर द्वेष हम कभी न करते, रहते सबसे मिल-जुल हम। 

नाम हमारा हिन्दू- मुस्लिम, जैना बुद्ध, सिख ईसाई। 
आपस में हम कभी न लड़ते, रहते मिल भाई- भाई। 

सुगंध फैलाते दिशा-दिशा,शोभित कर क्यारी- क्यारी। 
महकाएँगें माँ का आँचल, यह धरती प्राणों से प्यारी। 

देश हमारा चमन बिहंसता,हम बच्चे इसके माली। 
सींचेंगे हम क्यारी- क्यारी, महकाएँगें डाली-डाली। 

दमकेगा यह देश हमारा, नव प्रसून मुस्काएँगे। 
करके तन-मन-प्राण निछावर, सुंदर स्वर्ग बसाएँगे। 

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, December 13, 2024

सच्चाई तेरा हथियार

सच्चाई तेरा हथियार

कहते थे गाँधीजी बारम्बार। 
    सादा जीवन, ऊँच्च विचार। 
         अहिंसा ही जीवन का सार। 
              कर इसको मन से स्वीकार। 

मिथ्या ही  है बस तेरी हार। 
    सच्चाई ही है तेरा हथियार। 
        तुझपर जन्मभूमि का भार। 
            कभी न जाना हिम्मत हार।

सहन  करो  मत अत्याचार। 
    स्वतंत्रता  तेरा है अधिकार। 
        यही है जीवन  का  आधार।             
            भारत माँ से तू करना प्यार। 

                  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

बापू को नमन

बापू को नमन

जन्मदिवस है दो अक्टूबर। 
    जन्मस्थान  था  पोरबन्दर। 
         पुतली  वाई  इनकी माता। 
            करमचंद  गाँधी  थे  पिता। 

देश -सेवा  का  व्रत लिया। 
    आजादी  का   यज्ञ किया। 
        करो  या मरो इनका नारा। 
            जिससे जागा भारत सारा। 

सत्य-अहिंसा का ले हथियार। 
    मिटाए अँग्रेजों का अत्याचार। 
        दिलाई  भारत  को आजादी। 
            नमन  बापू  महात्मा  गॉंधी। 

                   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

माता रानी से विनती

माता रानी की विनती 

करुँ नमन मैं बारंबार,कष्ट से दो मांँ उबार।
भँवर में नैना मेरी,कर दे माँ उस पार।।
निश दिन करुँ पुकार,हृदय से करुँ गुहार,
भंवर में नैया मेरी......
जीवन नैया तुम ही खेवैया,
अब तो पार करो हे मैया,
सारे जगत की तुम रखबैया,
तुझ बिन कोई नहीं खेबैया।
मुझ पर भी कर उपकार ।
दुनियाँ मेरी दे संवार,
भंवर में नैया मेरी......
बिगड़ी मेरी बना दो हे माता !
हे जग-जननी हे जगमाता।
द्वार तुम्हारे जो भी है आता।
पूर्ण मनोरथ सब सुख पाता।
आई हूंँ मैं तेरे द्वार, 
मुझको भी दे अपना प्यार ।
भंवर में नैया मेरी......
मांँ मैं तेरे चरणों की दासी।
आज मिटा दो सभी उदासी।
तेरी दया की मैं अभिलाषी।
तेरी कृपा की हूँ प्रत्याशी।
कर रही मैं पुकार,मेरी भी सुनो गुहार।
भँवर में नैया मेरी.......
आई हूँ मैं तेरे द्वार.......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

कौवे की नादानी

कौए की नादानी

एक कौआ प्यास से व्याकुल
               मुश्किल से पानी पाया। 
घडे़ में थोड़ा पानी देख, 
                   उसके मन में आया। 
मेरे पूर्वज बड़े मूर्ख थे जो, 
             कठिन परिश्रम करते थे। 
एक-एक कंकड़ लाकर, 
                 घडे़ में डाला करते थे। 
मैं तो एक बड़ा-सा पत्थर, 
               उठाकर घड़े में डालूँगा।
थोड़ी-सी मेहनत कर ही, 
                   मैं पानी को पा लूंगा।
जोर लगा बड़ा-सा पत्थर, 
                 चोंच में उसने उठाया। 
झट जाकर उसने उसको, 
                  घडे़ के अंदर गिराया। 
भारी पत्थर से घटतल टूटा, 
                लगा पानी अब बहने। 
प्यासा कौआ अति विकल हो, 
                      लगा चोंच रगड़ने। 
इसीलिए करो सब काम, 
           थोड़ा तुम सोंच-समझकर, 
बड़े-बुजुर्गों के अनुभव का, 
                        पूरा लाभ लेकर। 
  
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, December 10, 2024

अकड़

अकड़ 

दो बकरियाँ पतले पुल पर, 
आमने सामने आ रही थीं। 
मैं तो उसे रास्ता नहीं दूंगी, 
सोंच दोनों इठला रही थी। 

           पहली बोली बायें हट कर, 
           तुम पहले मुझको जाने दे। 
           दूसरी बोली मै नहीं हटती,
           पहले मुझको तुम जाने दे। 

पहली बकरी अकड़ दिखा, 
बीच रास्ते पर खडी़ रही। 
दूजी भी क्या कम थी उससे, 
अपनी जिद्द पर अड़ी रही। 

        पहली बकरी ताव में आकर, 
           सींग घुमा दूसरी को मारी। 
            दूसरी भी गुस्से में आकर, 
            दे दूलत्ती पहली को मारी। 

लड़ते-लड़ते दोनों गिर गई, 
नहर के बहते जलधार में। 
डूब मरीं वे आन-शान में, 
उनकी जान गयी बेकार में। 

         सुन बच्चों!अकड़ दिखाकर।
          लड़- झगड़ मत देना जान। 
          समझदारी से ही काम लेना 
        बुद्धिमानी की होती पहचान। 
   
    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

सहयोग और समझदारी

सहयोग और समझदारी

दो बकरियाँ पतले पुल पर, 
आमने- सामने आ रही थी। 
कैसे  रास्ता मैं पार करूँगी, 
मन में सोंच घबरा रही थी। 

           जब  दोनों  पास आईं तब, 
         पहली बोली  बहन  नमस्ते। 
          उन बकरियों- सा नहीं करेंगे, 
          मरी गिरकर जो लड़ते लड़ते। 

दूसरी बोली बहन बता दो। 
तुमने क्या सोचा है उपाय। 
रास्ता दोनों को मिल जाए, 
जान भी दोनों की बच जाय। 

            पहली बोली- मैं बैठती हूँ, 
            तुम मेरी पीठ पर चढ़कर। 
            पार कर जा रास्ता अपना, 
            चली जाऊँगी मैं भी उठकर। 

ऐसे उन्होंने सहयोग देकर, 
एक-दूजे की जान बचाई। 
समझदारी से काम किया, 
नहीं किया उन्होंने लड़ाई। 

           राह बनाना जिस तरह से, 
           बुद्धिमानी का होता काम। 
           रास्ता देना भी उसी तरह
           समझदारी का होता नाम। 

              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

श्रवण कुमार

श्रवण कुमार

माता-पिता को तीर्थ कराने,
                बहंगी लेकर चल पड़ा। 
सोलह बरस का बालक था वह
       नाम था उसका श्रवण कुमार। 

राह में माता-पिता जी बोले, 
                 प्यास लगी है जोर से। 
बेटा जाकर पानी लाना, 
              घडा़ भर किसी ओर से। 
वृक्ष के नीचे बहंगी रखकर, 
                  पानी लाने चल पड़ा। 
सोलह.बरस का बालक....... ....
घडा़ डुबाया पानी में जब, 
              आवाज हुई तब जोर से। 
दशरथ राजा हाथी समझकर, 
                    मारे उसको तीर से। 
मरणासन्न हो गिरा धरा पर, 
         मुँह से निकल पड़ा चित्कार। 
सोलह बरस का बालक................... 
मामा पहुंचे सुन चित्कार, 
              हाय रे! मैंने क्या किया। 
हाथी समझकर भांजे को ही, 
              तीर चलाकर मार दिया। 
मन ग्लानि में डूब गया और, 
            मुँह से निकला हा-हाकार, 
सोलह बरस का बालक...... 

कहा श्रवण ने व्यर्थ में मामा! 
                  आप यहाँ रुआंसे  हैं। 
पानी पिला दें जाकर मामा, 
                माँ- पिताजी प्यासे हैं। 
प्यासे रहेंगे अगर वे मामा, 
                 अटके रहेंगे मेरे प्राण। 
सोलह बरस का बालक............. 
पाँव दबाकर दशरथ पहुंचे, 
                 उन दोनों के नजदीक। 
पानी पिलाया मुक होकर के, 
                 बेचारे को नहीं थे दृग। 
बोले -बेटा तू क्यों चुप है, 
              लगता है तुम थक गया। 
सोलह बरस का........ 
अंधे माता पिता ने सुनी जब, 
         दशरथ से यह करुण- कथा। 
बोले जला दो हम दोनों को, 
                 बेटे के संग बना चिता। 
पुत्र वियोग में तुम भी मरोगे,
              मर रहे हम जिस प्रकार। 
सोलह बरस का ...... 
   सुजाता प्रिय समृद्धि

Sunday, December 8, 2024

बुद्धिमानी

बुद्धिमानी

नहर पार के अमरूद पेड़ पर, बैठा था एक बंदर। 
उस पेड़ में अमरूद के फल, लगे हुए थे सुंदर। 
इस पार से राजू ने सोचा,कैसे अमरूद खा पाऊंँगा।
हट भी जाए बंदर तो क्या,नहर पार कर पाऊंँगा ? 
उसके मन में उपजी एक, तत्काल योजना प्यारी। 
झट उठा एक नन्हा-सा पत्थर, बंदर पर दे मारी। 
बदले हेतु बंदर को जब,मिला न पेड़ पर पत्थर। 
झट से अमरूद तोड़ पेड़ से, फेका राजू के ऊपर। 
पहले से तैयार था राजू,लपक लिया अमरूद को। 
मीठा अमरूद खा मन से,धन्यवाद दिया बंदर को। 
बुद्धिमान लोग किसी काम में,जब दिमाग लगाते। 
बुद्धि-कौशल व चतुराई से, मनचाहा फल हैं पाते। 

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, December 7, 2024

बांझ (लघुकथा)

बांझ

तुम चुमापन करने लायक नहीं हो। तुझ मनहुस का साया भी किसी पर पड़ेगा वह भी नि: संतान रह जाएगा।अभी सगुन के लिए दुल्हन की गोद में बच्चा डाला जाता है वह दम भी तुममें नहीं है।सांस ने नफरत और घृणा से मुँह बनाकर अपनी शोले उगलती आँखों से देखते हुए कहा उसके हाथों से चावल छीन कर फेंक दिया। 
दीवार पर रचित सुंदर रंगोलीनुमा कोहबर के आगे बैठी नवेली देवरानी घूँघट की ओट से उसे देखने लगी। देवर सिर झुकाए बैठा था। 
मुहल्ले और परिवार की स्त्रियों की सहानुभूति पूर्ण नजरें देख रचना की सुंदर मुखड़े पर दुख, छोभ और अपमान के मिले जुले भाव उत्पन्न हुए।डबडबा आई सुन्दर नयनों से आसुओं की धार ढलक आई। 
  क्ष अचानक उसके चेहरे पर कुछ निर्णायात्मक भाव उभरे।फिर रणचंडी- सी हाथ उठाकर रोती हुई बोली- हाँ s s s मैं चुमापन करने लायक नहीं हूँ।
लेकिन होती ! यदि आप का बेटा नामर्द नहीं होता। आपके बेटे और घर की इज्जत की खातिर मैंने अपने मन से मातृत्व भाव को भी मार दिया। बहू की जगह मुझे ऐसा कलंकित नाम देकर प्रताड़ित किया सभी कुछ सहन किया।लेकिन भरे समाज में............ 
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, December 6, 2024

मुझे पता है

                          मुझे 
                     पता है प्रिय 
                तुम्हें मेरी इच्छा नहीं 
              फिर भी मुझे सदैव ही 
          तुम्हारी प्रतीक्षा लगी रहती है
       तुम आओगे तो मेरी परछाई से भी
     दूर रहोगे, मगर एक बार मुझे निहारोगे।
नाम लेना स्वीकार नहीं पर,मन-ही-मन पुकारोगे 
      क्योंकि, न तो मैं फूलों- सी कोमल हूँ
      न सुंदर ! बस रंग- रूप-सुगंध विहिन
      तब भी  तुम आकर्षित  हो  कर यहाँ
      कुछ पल  का  सांनिध्य पाने के लिए 
      अनजानी डोर-से खिंचे चले आओगे
      फिर संकोच के आगोश में पलकें मुंद,
      मन- ही -मन कुछ तराने गुनगुनाओगे
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'